दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत और सबसे ताक़तवर देश अमेरिका के बीच रिश्ते हमेशा से खास रहे हैं। कभी दोस्ती की मिसाल बने, तो कभी रणनीतिक तनाव में उलझे। अब एक बार फिर दोनों देशों के रिश्तों में तल्ख़ी दिख रही है, और इसकी वजह है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार में अमेरिका के उद्योग मंत्री हॉवर्ड लुटनिक का बयान। उन्होंने भारत पर लगे टैरिफ को हटाने के लिए तीन सख्त शर्तें रख दी हैं, जो न केवल भारत की विदेश नीति को चुनौती देती हैं, बल्कि उसकी संप्रभुता को भी सवालों के घेरे में खड़ा करती हैं।
अमेरिकी मंत्री की टैरिफ हटाने के बदले तीन शर्तें
हॉवर्ड लुटनिक ने ब्लूमबर्ग टीवी से बातचीत में साफ कहा कि अगर भारत चाहता है कि उस पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ हटाए जाएं, तो उसे तीन चीजें करनी होंगी- रूस से तेल खरीदना बंद करना होगा, BRICS समूह से बाहर आना होगा और अमेरिका का खुलकर समर्थन करना होगा।
लुटनिक के बयान में तीखा राजनीतिक संदेश छुपा है। उनका कहना है कि भारत को तय करना होगा कि वह रूस और चीन के साथ खड़ा रहना चाहता है या अमेरिका के साथ। उन्होंने दो टूक कहा, “अपने सबसे बड़े ग्राहक (अमेरिका) का समर्थन करें, वरना 50% टैरिफ चुकाएं।” यह बयान न केवल दबाव की रणनीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अमेरिका भारत को एक रणनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहता है।
भारत पर राजनीतिक और आर्थिक दबाव
डोनाल्ड ट्रंप ने 30 जुलाई को भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जो 7 अगस्त से लागू हुआ। इसके अगले ही दिन यानी 6 अगस्त को उन्होंने रूस से सस्ता तेल खरीदने के आरोप में भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ और लगा दिया, जो 27 अगस्त से प्रभाव में आ गया।
इससे भारत पर कुल मिलाकर 50% तक का टैरिफ लागू हो चुका है। ट्रंप का कहना है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे दुनिया के खुले बाज़ार में बेच रहा है, जिससे व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन युद्ध जारी रखने में आर्थिक मदद मिल रही है। ट्रंप के मुताबिक, भारत का यह रवैया अमेरिका की नीति और नैतिकता दोनों के खिलाफ है।
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“भारत जल्द माफी मांगेगा”- क्या यह दबाव की चाल है?
हॉवर्ड लुटनिक ने अपने बयान में यह भी दावा किया कि भारत एक-दो महीने में माफी मांगकर ट्रंप के साथ बातचीत की टेबल पर आएगा। उन्होंने कहा कि भारत जानता है कि उसे अमेरिका के समर्थन की जरूरत है और इसलिए वह राष्ट्रपति ट्रंप से नया सौदा करने की कोशिश करेगा।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह सौदा ट्रंप की शर्तों पर ही होगा और प्रधानमंत्री मोदी इस पर सहमति देंगे। लुटनिक का यह बयान भारत की गरिमा और निर्णय क्षमता पर सीधा सवाल है। यह बयान भारत को एक ऐसे देश की तरह पेश करता है जिसे अमेरिका जब चाहे तब झुका सकता है। यह न केवल राजनीतिक रूप से अनुचित है, बल्कि कूटनीतिक शिष्टाचार के भी खिलाफ है।
भारत का संयमित और संतुलित जवाब
जहां एक तरफ अमेरिका से आ रहे बयानों में आक्रोश और दबाव साफ दिखता है, वहीं भारत ने बेहद संतुलित और संयमित तरीके से प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत अमेरिका के साथ व्यापार पर बातचीत जारी रखेगा। उन्होंने यह भी दोहराया कि भारत QUAD जैसे मंच को बहुपक्षीय बातचीत के लिए एक अच्छा माध्यम मानता है।
यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने फिर दोहराया कि वह हर उस कोशिश का स्वागत करता है जो शांति की दिशा में बढ़े। भारत का यह रुख यह दिखाता है कि वह दबाव में आकर अपनी विदेश नीति नहीं बदलने वाला। भारत संतुलन बनाए रखते हुए, खुद के राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखकर आगे बढ़ रहा है।
क्या BRICS से अलग होने की मांग उचित है?
BRICS एक ऐसा मंच है जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। यह समूह आर्थिक और रणनीतिक सहयोग के लिए बना है, और हाल ही में इसमें कई नए देश भी शामिल हुए हैं। ऐसे में भारत से BRICS छोड़ने की मांग करना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़ा करता है।
भारत हमेशा से “बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था” का पक्षधर रहा है, जहां वह अमेरिका, रूस, चीन और यूरोप सभी के साथ अपने रिश्ते संतुलित रखता है। भारत का यह संतुलन ही उसकी सबसे बड़ी कूटनीतिक ताकत है, जिसे किसी एक पक्ष की शर्तों पर छोड़ना समझदारी नहीं होगी।
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