खुद को ड्रैगन और भारत को हाथी क्यों कहता है चीन, कैसे हुई थी इसकी शुरुआत? पढ़ें पूरी कहानी

Elephant and Dragon
Elephant and Dragon

Elephant and Dragon: हम सभी जानते हैं कि रिश्तों में पहचान बहुत मायने रखती है। जब दो पड़ोसी देश दुनिया की राजनीति, कूटनीति और व्यापार के सबसे बड़े मंचों पर आमने-सामने होते हैं, तो हर इशारा, हर बात और हर प्रतीक एक गहरा संदेश देता है। कुछ ऐसा ही हाल ही में देखने को मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग कई सालों बाद एक मंच पर मिले वो भी उस वक्त, जब दुनिया में बड़े बदलाव की आहट सुनाई दे रही है।

इस मुलाकात के दौरान चीनी राष्ट्रपति ने एक ऐसी बात कही जिसने ध्यान खींचा। उन्होंने कहा- ड्रैगन और हाथी का साथ आना जरूरी है। अब सवाल ये है कि आखिर वो खुद को ड्रैगन और भारत को हाथी क्यों कहते हैं? चलिए, इस दिलचस्प और गहरे प्रतीक की कहानी को थोड़ा पास से समझते हैं।

भारत को हाथी क्यों कहा जाता है?

भारत को ‘हाथी’ कहे जाने की शुरुआत कोई भारतीयों ने नहीं की, बल्कि इसकी जड़ें पश्चिमी मीडिया से जुड़ी हुई हैं। सबसे पहला उदाहरण 2015 के उस कार्टून से मिलता है, जिसे प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने जलवायु सम्मेलन के दौरान प्रकाशित किया था। उस कार्टून में भारत को एक विशाल, भारी और सुस्त हाथी की तरह दिखाया गया था, जो प्रगति की “ट्रेन” के रास्ते में खड़ा है।

यह तुलना धीरे-धीरे लोकप्रिय होती चली गई। लेकिन इसके पीछे केवल मज़ाक या आलोचना नहीं, बल्कि एक गहरी सोच भी छिपी थी।

1990 के दशक में जब भारत ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, तभी से विदेशी मीडिया ने भारत की तुलना चीन से शुरू की। चीन की तेज़ी और आक्रामक विकास को “ड्रैगन” के रूप में दर्शाया गया, जबकि भारत को एक ऐसा “हाथी” माना गया जो धीरे-धीरे चलता है, मगर जब चलता है तो उसकी चाल स्थिर और ताकतवर होती है।

कनाडा के मशहूर लेखक डेविड एम. मालोन ने अपनी प्रसिद्ध किताब Does the Elephant Dance? में भारत को ठीक यही पहचान दी, उन्होंने लिखा कि भारत भले ही धीमा दिखे, लेकिन उसमें गहराई, संतुलन और स्थायित्व है। वो हाथी की तरह है, जो अपने रास्ते पर अडिग रहता है और समय आने पर पूरे जंगल की दिशा बदल सकता है।

ये भी पढ़ें- मोदी-जिनपिंग के बीच 50 मिनट बातचीत हुई, चीनी राष्ट्रपति ने कहा- ड्रैगन और हाथी को साथ आना चाहिए

चीन ने खुद को ड्रैगन क्यों माना?

चीन में ‘ड्रैगन’ केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान है। वहां ड्रैगन को किसी खतरनाक जीव की तरह नहीं, बल्कि शक्ति, समृद्धि, गौरव और शुभता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

1800 साल पहले हान राजवंश के समय से ही चीन में ड्रैगन को शाही चिन्ह के रूप में अपनाया गया। सम्राट खुद को “ड्रैगन की संतति” कहते थे। ये प्रतीक इतना शक्तिशाली बन गया कि आज भी चीन में ड्रैगन को लेकर गर्व की भावना देखी जाती है।

यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, जब चीन अपने विकास की कहानी बताता है, तो वह खुद को एक तेज़, सशक्त और नियंत्रण में रहने वाला ड्रैगन मानता है। और इस सोच को अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भी धीरे-धीरे स्वीकार कर लिया।

हालांकि, पश्चिमी दुनिया की कहानियों में ड्रैगन अक्सर एक खतरनाक राक्षस होता है, जिसे वीर योद्धा मारकर जीत हासिल करते हैं। लेकिन चीन के लिए ड्रैगन हीरो होता है, न कि विलेन।

जब प्रतीक बन जाते हैं पहचान

भारत और चीन की यह प्रतीकात्मक छवि हाथी और ड्रैगन आज केवल कार्टूनों या किताबों की बात नहीं रह गई है। यह अब दोनों देशों की वैश्विक छवि, कूटनीति और आपसी रिश्तों की व्याख्या का हिस्सा बन चुकी है।

जहां चीन चाहता है कि उसकी तेज़ी, ताकत और प्रभाव को ड्रैगन की तरह देखा जाए, वहीं भारत अपनी शांति, धैर्य और स्थिरता को हाथी की छवि से जोड़ता है।

दोनों देशों की यह पहचान सिर्फ नाम या रूपक नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, रणनीति और विश्व मंच पर उपस्थिति को दर्शाती है।

पंडित नेहरू और एनिमल डिप्लोमेसी

भारत के “हाथी” वाले प्रतीक की एक और खूबसूरत कहानी पंडित जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी है। आज़ादी के बाद, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में “एनिमल डिप्लोमेसी” का उपयोग किया।

नेहरू ने जापान और कनाडा जैसे देशों के बच्चों को हाथी उपहार में दिए। यह केवल एक जानवर नहीं था, बल्कि एक संदेश था- भारत शांति का, करुणा का और मित्रता का प्रतीक बनना चाहता है। उस समय भी, हाथी ने भारत की छवि को दुनिया में मजबूत बनाने का काम किया।

ये भी पढ़ें- चावल से बनी दीवार, 9000 कमरों वाला महल, सबसे लंबी नहर, हाई-स्पीड ट्रेन… चीन में क्या-क्या है खास?

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *