नई दिल्ली: जब कोई व्यक्ति 16 साल की उम्र में देश और समाज के लिए कुछ करने का सपना लेकर चलता है, तो उसकी यात्रा संघर्षों, संकल्पों और उपलब्धियों से भरी होती है। सीपी राधाकृष्णन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले राधाकृष्णन अब NDA की ओर से भारत के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। यह न केवल उनके लिए, बल्कि उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो अपने विचारों और मेहनत के दम पर देश में बदलाव लाना चाहते हैं।
20 अक्टूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुपुर में जन्मे चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन का जीवन बहुत सामान्य परिवेश में शुरू हुआ। वे OBC समुदाय से आते हैं और बचपन से ही समाज के बीच रहकर, उसकी समस्याओं को समझते हुए बड़े हुए। यही वजह थी कि युवावस्था में ही उन्होंने सामाजिक कार्यों में रुचि लेनी शुरू कर दी।
16 साल की उम्र में RSS से जुड़ाव
राधाकृष्णन जब महज 16 साल के थे, तभी उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा से जुड़ाव महसूस किया और सक्रिय स्वयंसेवक बन गए। 1974 में वे भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति के सदस्य भी बने, जो उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
राजनीति में मजबूती से रखा कदम
1998 और 1999 में उन्होंने कोयम्बटूर लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की। 1998 में वे 1.5 लाख से ज्यादा वोटों के भारी अंतर से जीते, और 1999 में भी उन्होंने 55,000 से अधिक वोटों से विरोधियों को शिकस्त दी। यह वो समय था जब दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ मजबूत नहीं मानी जाती थी, लेकिन राधाकृष्णन ने अपने लोकप्रियता और कार्यशैली से इस धारणा को तोड़ा।
तमिलनाडु भाजपा को दी नई दिशा
राधाकृष्णन 2004 से 2007 तक तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्होंने 19,000 किलोमीटर लंबी रथयात्रा निकाली, जो आज भी तमिलनाडु की राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना मानी जाती है। इस यात्रा का मकसद था नदियों को जोड़ना, आतंकवाद के खिलाफ जनजागरण, समान नागरिक संहिता की आवश्यकता और नशाखोरी के खिलाफ आवाज उठाना। उन्होंने इन मुद्दों को गांव-गांव तक ले जाकर आम लोगों को जोड़ने की कोशिश की।
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झारखंड से महाराष्ट्र तक राज्यपाल का दायित्व
अपने राजनीतिक अनुभव और संगठनात्मक समझ के चलते राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। इसके बाद उन्होंने तेलंगाना और पुडुचेरी का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला। उनकी कार्यशैली, सादगी और जनता से जुड़ाव को देखते हुए जुलाई 2024 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने राज्य की सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाई।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी बढ़ाया देश का मान
राधाकृष्णन सिर्फ राष्ट्रीय राजनीति तक सीमित नहीं रहे। 2004 में वे संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने। इसके साथ ही वे ताइवान का दौरा करने वाले पहले भारतीय संसदीय दल के सदस्य भी रहे। इससे यह स्पष्ट होता है कि विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी उनकी पकड़ मजबूत रही है।
कोयर बोर्ड में शानदार प्रदर्शन
2016 में उन्हें कोच्चि स्थित कोयर बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उनके कार्यकाल में भारत का कोयर निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया – 2,532 करोड़ रुपये। यह उनकी प्रशासनिक कुशलता और विजन का उदाहरण है कि कैसे एक पारंपरिक उद्योग को भी वैश्विक बाजार में नई पहचान दी जा सकती है।
खेलों के भी थे शौकीन, फिटनेस में रहे अव्वल
राधाकृष्णन सिर्फ राजनीति या प्रशासन तक ही सीमित नहीं रहे। वे कॉलेज में टेबल टेनिस के चैंपियन रहे और लंबी दौड़ में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। क्रिकेट और वॉलीबॉल जैसे खेलों में भी उन्हें रुचि थी। शायद यही वजह है कि उन्होंने हमेशा फिटनेस और अनुशासन को जीवन का अहम हिस्सा माना।
20 से ज्यादा देशों की यात्रा का अनुभव
दुनिया को जानने और समझने की उनकी इच्छा ने उन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, जापान, चीन, सिंगापुर जैसे 20 से ज्यादा देशों की यात्रा करने का मौका दिया। इन यात्राओं से उन्हें अलग-अलग संस्कृतियों और व्यवस्थाओं को समझने का अनुभव मिला, जो किसी भी राजनेता के लिए अत्यंत मूल्यवान होता है।
पारिवारिक जीवन में भी संतुलन
राधाकृष्णन के निजी जीवन की बात करें तो उनकी पत्नी का नाम श्रीमती आर. सुमति है। उनके एक बेटा और एक बेटी हैं। हालांकि वे अपने पारिवारिक जीवन को निजी रखते हैं, लेकिन अपने सार्वजनिक जीवन में वे पूरी पारदर्शिता के साथ सामने आते हैं।
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