India-US Tension: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारत और चीन पर रूस से तेल आयात को लेकर आर्थिक दबाव बढ़ाने की रणनीति तेज कर दी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के तीसरे साल में, अब अमेरिका एक बड़ा और सख्त कदम उठाने की तैयारी में है- भारत और चीन पर 100% टैरिफ लगाने का। ये फैसला सिर्फ व्यापारिक नहीं बल्कि रणनीतिक दबाव का हिस्सा बताया जा रहा है, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था को झटका देने की योजना है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं आम लोग, खासतौर पर भारत जैसे विकासशील देश के कारोबारी और उपभोक्ता।
ट्रंप की सख्त रणनीति
रूस से तेल खरीद को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। पहले से ही भारत पर 50% टैरिफ लगाया जा चुका है और अब बात 100% तक पहुंच गई है। हाल ही में वाशिंगटन में हुई एक अहम बैठक में ट्रंप ने यूरोपीय संघ (EU) के नेताओं के सामने भारत और चीन के खिलाफ 100% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा।
ट्रंप का मानना है कि रूस की सबसे बड़ी ताकत है उसका तेल और गैस निर्यात। और जब भारत और चीन जैसे बड़े देश इससे भारी मात्रा में तेल खरीदते हैं, तो वे अनजाने में पुतिन को समर्थन दे रहे हैं। उनका तर्क है कि अगर ये देश रूसी तेल से दूरी बनाएंगे, तो रूस पर आर्थिक दबाव इतना बढ़ेगा कि वह युद्ध रोकने पर मजबूर हो जाएगा।
EU और G7 की भूमिका
अमेरिका अकेले ये बड़ा फैसला नहीं लेना चाहता। ट्रंप ने EU और G7 देशों से भी यही मांग की है कि वे भारत और चीन पर समान रूप से 100% टैरिफ लगाएं। लेकिन यूरोपीय संघ की स्थिति थोड़ी जटिल है। खुद EU ने 2024 में लगभग 19% गैस रूस से खरीदी थी, इसलिए उसके लिए भारत और चीन पर इतनी बड़ी कार्रवाई करना आसान नहीं है। हालाँकि, EU रूस के खिलाफ 19वां प्रतिबंध पैकेज तैयार कर चुका है, जिसमें ‘थर्ड पार्टी ट्रेड’ को रोकने की योजना शामिल है।
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EU ने अब तक इस प्रस्ताव पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन इतना जरूर कहा है कि भारत और चीन के साथ बातचीत जारी रहेगी। साफ है कि मामला केवल व्यापार का नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन का भी है।
भारत की चिंता:
भारत के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील है। एक तरफ राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा का सवाल है और दूसरी तरफ अमेरिका से रिश्तों में आ रही दरार। भारत रोजाना औसतन 1.75 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीदता है, जो उसके कुल तेल आयात का 35% से ज्यादा है। भारत का कहना है कि यह फैसला पूरी तरह उसके राष्ट्रीय हित में है और इसे ‘ब्लड मनी’ कहे जाने को अनुचित ठहराया है।
भारत ने पहले भी अमेरिका द्वारा लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ को ‘अविवेकपूर्ण’ करार दिया था। लेकिन अगर अब G7 देश अमेरिका के साथ आ जाते हैं और 100% टैरिफ लागू हो जाता है, तो भारत के निर्यात को बड़ा झटका लग सकता है। इससे न केवल कारोबारी प्रभावित होंगे बल्कि आम जनता पर भी महंगाई का दबाव आ सकता है।
चीन की तीखी प्रतिक्रिया
चीन, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, ने अमेरिका की इस नीति की कड़ी निंदा की है। चीनी विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि रूस को लेकर अमेरिका की इस “सेकंडरी सैंक्शन” पॉलिसी को वे स्वीकार नहीं करेंगे। चीन का कहना है कि यह अमेरिकी रणनीति वैश्विक व्यापार तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है और विकासशील देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
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