स्कॉटलैंड: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर एक नई समयसीमा दी है। उन्होंने रूस से कहा है कि वह अगले 10-12 दिनों में युद्ध समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए, वरना गंभीर प्रतिबंधों और आयात शुल्क का सामना करना पड़ेगा। यह बयान ट्रंप ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ स्कॉटलैंड में हुई मुलाकात के दौरान दिया।
ट्रंप ने साफ तौर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा, “मैं पहले ही 50 दिनों का समय दे चुका हूं, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं हुई। अब और इंतजार का कोई मतलब नहीं। इसलिए मैं 10-12 दिनों की अंतिम डेडलाइन दे रहा हूं।” उन्होंने यह भी कहा कि यह चेतावनी सिर्फ रूस के लिए नहीं, बल्कि उन देशों के लिए भी है जो रूस से ऊर्जा खरीदते हैं – जैसे भारत और चीन।
रूस की तीखी प्रतिक्रिया
इस चेतावनी पर क्रेमलिन ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने सोशल मीडिया पर ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा कि यह अल्टीमेटम अमेरिका और रूस के बीच टकराव को और बढ़ा सकता है। उनके अनुसार, हर नया अल्टीमेटम युद्ध को एक कदम और करीब ले जाता है – न केवल यूक्रेन के साथ, बल्कि सीधे अमेरिका के साथ भी।
भारत को क्या नुकसान हो सकता है?
भारत रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता है। 2025 की पहली छमाही में भारत ने प्रतिदिन औसतन 17.5 लाख बैरल रूसी तेल आयात किया है। अगर अमेरिका भारत पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाता है, तो इससे ईंधन की लागत काफी बढ़ सकती है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 8-12 रुपये प्रति लीटर तक का इजाफा हो सकता है, जिससे महंगाई और घरेलू खर्चों पर व्यापक असर पड़ेगा।
टैरिफ का प्रभाव सिर्फ ऊर्जा तक सीमित नहीं रहेगा। भारत के प्रमुख निर्यात जैसे फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र, आईटी सेवाएं और ऑटो पार्ट्स भी अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे प्रतिस्पर्धा कमजोर पड़ेगी और कारोबार प्रभावित होगा। भारत अमेरिका को हर साल लगभग $74 अरब का निर्यात करता है, जिसमें बड़ी गिरावट आ सकती है।
भविष्य के संबंधों पर असर
भारत और अमेरिका एक लंबे समय से मुक्त व्यापार समझौते और $500 अरब के व्यापार लक्ष्य की दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसे में टैरिफ लागू होना इन योजनाओं को झटका दे सकता है। दूसरी ओर, भारत का रूस के साथ दशकों पुराना रक्षा और ऊर्जा सहयोग रहा है। अमेरिका का दबाव भारत को कठिन फैसलों के लिए मजबूर कर सकता है।
इसके अलावा, अगर अमेरिका अपने रुख पर कायम रहता है, तो भारत वैश्विक गठबंधनों जैसे ब्रिक्स और वैकल्पिक तकनीकी प्लेटफॉर्म की ओर ज्यादा झुकाव दिखा सकता है। भारत पहले भी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात कर चुका है और पश्चिमी देशों की ‘चयनात्मक नैतिकता’ की आलोचना करता रहा है।
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