‘यूक्रेन को बहुत जमीन मिलेगी और वो फिर से…’ जेलेंस्‍की से मुलाकात के बाद ट्रंप का दावा, अब होगा लैंड स्‍वैप का खेल?

Trump-zelensky meeting
Trump-zelensky meeting

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने न सिर्फ दुनिया की राजनीति को झकझोरा है, बल्कि वैश्विक शांति की नींव को भी हिला कर रख दिया है। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक ताजा बयान फिर से चर्चा में है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात के कुछ ही घंटे बाद ट्रंप ने दावा किया, “यूक्रेन को बहुत जमीन मिलेगी, और वह फिर से उठ खड़ा होगा।”

ये शब्द यूं ही नहीं कहे गए। इसके पीछे छिपी है एक रणनीति, जिसे ‘लैंड स्‍वैप फॉर्मूला’ कहा जा रहा है। लेकिन आखिर ये लैंड स्वैप है क्या? और क्यों यह दावा आने वाले वक्त में एक नया भूचाल ला सकता है?

लैंड स्वैप का मतलब और इसका इतिहास

लैंड स्वैप यानी जमीन के बदले जमीन का सौदा। इस फॉर्मूले में एक देश अगर कोई इलाका किसी और के कब्जे में खो देता है, तो उसे उस नुकसान की भरपाई के रूप में कहीं और जमीन दी जा सकती है।

ऐसे कई उदाहरण पहले भी देखे जा चुके हैं- 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान कुछ क्षेत्रों का आदान-प्रदान हुआ। जर्मनी और पोलैंड के बीच भी इतिहास में लैंड एक्सचेंज हुआ है। इजराइल और फिलिस्तीन के विवाद में भी ये मॉडल कई बार सामने आया है।

तो क्या अब ट्रंप इस मॉडल को रूस-यूक्रेन युद्ध में लागू करवाना चाहते हैं?

क्या रूस के कब्जे की जमीन यूक्रेन खो देगा?

ट्रंप का बयान “यूक्रेन को बहुत जमीन मिलेगी” जितना उम्मीद भरा दिखता है, उतना ही बड़ा राजनीतिक और रणनीतिक संकेत देता है। ट्रंप स्पष्ट रूप से यह मानते हैं कि रूस एक “ताकतवर सैन्य राष्ट्र” है, और उसे नजरअंदाज करना आसान नहीं। ऐसे में युद्ध खत्म करने के लिए एक प्रतिस्थापन समझौता लाया जा सकता है।

इसका मतलब ये हो सकता है कि यूक्रेन रूस के कब्जे में गए कुछ हिस्सों को छोड़ने पर सहमत हो जाए, और बदले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय (जैसे अमेरिका या यूरोपियन यूनियन) से किसी अन्य क्षेत्र या ज़मीन का आश्वासन ले।

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क्या यूक्रेन को नई जमीन मिल सकती है?

यह सबसे बड़ा और उलझा हुआ सवाल है। कोई देश अपनी ज़मीन कैसे किसी और को दे सकता है? और बदले में नई ज़मीन कहां से आएगी?

यहां ट्रंप के “बफर ज़ोन” और “अंतरराष्ट्रीय गारंटी” जैसे विचार सामने आते हैं। एक संभावना ये हो सकती है कि यूक्रेन की कुछ सीमा क्षेत्रों को फिर से डिफाइन किया जाए, और उन जगहों को बफर ज़ोन घोषित कर दिया जाए जो न रूस में हों और न ही यूक्रेन में, लेकिन निगरानी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के हाथ में हो।

इससे एक ओर रूस को लगेगा कि उसकी सीमाओं की सुरक्षा बनी हुई है, और दूसरी ओर यूक्रेन को ये सुकून मिलेगा कि उसे कोई ठोस नुकसान नहीं हुआ।

अमेरिका और यूरोप की भूमिका

डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से अमेरिका की “नो वॉर” पॉलिसी को बढ़ावा देते रहे हैं। वे इराक और अफगानिस्तान जैसे युद्धों को अमेरिका के लिए आर्थिक और मानवीय नुकसान मानते हैं। ऐसे में ट्रंप की योजना यह है कि अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सुरक्षा, इंटेलिजेंस सपोर्ट और हवाई सुरक्षा तो देगा, लेकिन सीधे सैनिक युद्ध में नहीं भेजेगा।

इस रणनीति में नाटो की सदस्यता को लेकर भी एक अहम शर्त है। ट्रंप का कहना है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा, ताकि रूस को यह न लगे कि उसकी सीमा पर कोई शत्रु खड़ा है।

इस डील से यूक्रेन को फायदा या नुकसान?

ट्रंप के लैंड स्वैप फॉर्मूले में यूक्रेन को शायद युद्ध से राहत मिले, उसकी अर्थव्यवस्था फिर से खड़ी हो, उसे सुरक्षा की अंतरराष्ट्रीय गारंटी मिले, लेकिन इसके बदले उसे अपनी ज़मीन का एक हिस्सा छोड़ना पड़ सकता है।

यह भावनात्मक और राजनीतिक रूप से एक कठिन फैसला होगा। युद्ध में जान गंवा चुके हजारों यूक्रेनी नागरिकों के परिवार इस सौदे को किस नजर से देखेंगे? क्या ज़मीन खोकर शांति खरीदना सही होगा?

इन सवालों के जवाब फिलहाल धुंधले हैं, लेकिन इतना जरूर तय है कि ट्रंप का यह फॉर्मूला अगर आगे बढ़ा, तो आने वाले महीनों में यूक्रेन युद्ध की दिशा ही बदल सकती है।

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