नई दिल्ली: हम सभी जीवन में हँसी-मजाक पसंद करते हैं। कॉमेडी हमारे तनाव को दूर करती है और मुस्कान लाती है। लेकिन जब ये हँसी किसी की तकलीफ, बीमारी या दुर्बलता पर की जाए तो वो हँसी नहीं, क्रूरता बन जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ जब सोशल मीडिया और स्टैंडअप कॉमेडी के मंच पर दिव्यांगों और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों का मज़ाक उड़ाया गया। इस अमानवीय रवैये पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है, और एक बेहद संवेदनशील और जरूरी फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया सख्त संदेश
कॉमेडियन समय रैना समेत पांच कॉमेडियनों द्वारा दिव्यांगों और स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों का मज़ाक उड़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इन सभी से न सिर्फ बिना शर्त माफी मंगवाई, बल्कि यह स्पष्ट आदेश भी दिया कि वे अपने यूट्यूब चैनल्स और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने साफ किया कि हास्य की आड़ में किसी की गरिमा या आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती। अदालत ने कहा कि माफी केवल कागज पर नहीं होनी चाहिए, बल्कि वह सच्चे मन से हो और उसका असर समाज तक पहुंचे।
पेशी से मिली छूट, लेकिन चेतावनी भी
इस मामले में जिन कॉमेडियनों ने माफी मांगी उनमें समय रैना, विपुन गोयल, बलराज घई, सोनाली ठक्कर और निशांत तंवर शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने से छूट दे दी, लेकिन साथ ही यह भी हिदायत दी कि आगे से किसी भी मंच या माध्यम पर ऐसा मजाक न किया जाए जो किसी की तकलीफ का मज़ाक उड़ाता हो।
अदालत ने यह भी कहा कि इन कलाकारों को अपने कार्यक्रमों के जरिए समाज में यह संदेश देना चाहिए कि संवेदनशीलता और मानवीयता से बड़ा कोई हास्य नहीं होता।
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सरकार बनाएगी गाइडलाइंस
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट को बताया कि सरकार जल्द ही ऐसे मामलों को नियंत्रित करने के लिए एक ठोस गाइडलाइन तैयार करने जा रही है। यह गाइडलाइन खास तौर पर कॉमेडियन और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए होगी, जिससे वे यह समझ सकें कि उनकी “फ्रीडम ऑफ स्पीच” की भी एक सीमा है और वह सीमा है किसी की गरिमा।
कोर्ट ने भी इस पर सहमति जताई और कहा कि गाइडलाइन किसी एक मामले को देखकर नहीं, बल्कि व्यापक दृष्टिकोण से तैयार की जानी चाहिए। इसमें एक्सपर्ट्स, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और दिव्यांग समाज के प्रतिनिधियों की राय भी शामिल की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता की बात ने छू लिया दिल
यह याचिका Cure SMA Foundation of India नामक संस्था द्वारा दाखिल की गई थी, जो SMA बीमारी से पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों के लिए काम करती है। संस्था ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मासूम बच्चों का मंचों पर मज़ाक उड़ाया जा रहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कोर्ट में कहा, “हास्य कलाकारों को अब सद्बुद्धि आ गई है, सभी ने माफ़ी मांग ली है। सुप्रीम कोर्ट का संदेश घर-घर तक गया है।” यह एक सशक्त और भावुक वक्तव्य था, जो दर्शाता है कि अब समाज में इस विषय पर गंभीरता आ रही है।
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