नई दिल्ली: हर दिन हम अपने घर के बजट को लेकर सोचते हैं, खासकर जब बाजार में चीजों की कीमतें बढ़ती हों। ऐसे में जब महंगाई कम हो और जरूरी सामान सस्ता मिले, तो सचमुच दिल को सुकून मिलता है। जुलाई 2025 में भारत में रिटेल महंगाई दर 1.55% पर आ गई है, जो पिछले 8 साल और 1 महीने में सबसे कम है। यह खबर न केवल आम आदमी के लिए राहत देने वाली है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था में स्थिरता का भी संकेत है।
महंगाई के आंकड़ों में लगभग आधा योगदान खाने-पीने की वस्तुएं देती हैं। जब इन चीजों के दाम घटते हैं, तो सीधे तौर पर महंगाई दर में कमी आती है। जुलाई में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर माइनस 1.76% पर पहुंच गई, जो पिछले महीने माइनस 1.06% थी। इसका मतलब है कि खाने-पीने के सामान की कीमतें वास्तव में कम हुई हैं, जिससे आम लोगों की जेब पर बोझ कम हुआ है।
यह बात खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में भी देखी गई, जहां महंगाई दर 1.72% से घटकर 1.18% हो गई है। शहरी इलाकों में भी महंगाई में कमी आई है, जहां यह 2.56% से घटकर 2.05% रह गई। इसका मतलब यह है कि चाहे आप शहर में रहते हों या गाँव में, दोनों जगह महंगाई का दबाव कम हुआ है।
RBI ने भी घटाया महंगाई का अनुमान
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में अपनी मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई का अनुमान घटाकर 3.1% कर दिया है। पहले यह 3.7% था। इसके अलावा, अप्रैल-जून तिमाही के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान भी 3.4% से घटाकर 2.1% कर दिया गया है। यह साफ दिखाता है कि महंगाई नियंत्रण में आ रही है और अर्थव्यवस्था में स्थिरता बढ़ रही है।
RBI का यह लक्ष्य है कि महंगाई दर 4% के आसपास रहे, ±2% की सीमा के भीतर। जुलाई में मिली 1.55% की दर इस लक्ष्य से काफी नीचे है, जो उपभोक्ताओं के लिए खुशखबरी है।
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महंगाई कैसे होती है और क्यों घटती है?
महंगाई का बढ़ना या घटना बाजार की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। जब लोगों के पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे होते हैं और वे चीजें खरीदना चाहते हैं, तो मांग बढ़ जाती है। यदि बाजार में उतनी सप्लाई नहीं होती, तो कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे महंगाई बढ़ती है।
दूसरी ओर, जब मांग कम हो और सप्लाई ज्यादा हो, तो कीमतें कम होती हैं, जिससे महंगाई कम होती है। सरल शब्दों में कहें तो अगर बाजार में पैसों का प्रवाह बहुत ज्यादा हो या सामान की कमी हो, तो महंगाई बढ़ती है।
CPI: महंगाई मापने का मापदंड
महंगाई का सही अंदाजा लगाने के लिए कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) का उपयोग किया जाता है। CPI यह दिखाता है कि हम रोजमर्रा की चीजों और सेवाओं के लिए जो कीमतें चुकाते हैं, उनमें कितना बदलाव आया है। यह आंकड़ा सरकार और RBI के लिए नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है।
हम सभी जब बाजार से सामान खरीदते हैं, तो यह CPI हमारी खरीददारी के औसत मूल्य को दर्शाता है। अगर CPI बढ़ता है, तो इसका मतलब है महंगाई बढ़ी है, और यदि CPI कम होता है तो महंगाई कम हुई है।
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