जब दो देशों के बीच लड़ाई सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि लोगों की ज़िंदगी, उनके भविष्य और उनकी ज़मीन तक पहुंच जाती है, तब हर नया बयान एक नया मोड़ बन जाता है। रूस और यूक्रेन की जंग ने दुनिया को दो हिस्सों में बाँट रखा है एक तरफ गोलियों की आवाज़ है और दूसरी ओर शांति की आस।
इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बार फिर दुनिया को चौंकाने वाला संदेश दिया है। उन्होंने साफ कर दिया है अगर यूक्रेन को जंग से बाहर निकलना है, तो शर्तें माननी होंगी। लेकिन क्या वाकई ये शर्तें शांति की ओर ले जाएंगी, या ये सिर्फ एक और रणनीतिक चाल है?
शांति की कीमत- डोनबास, नाटो और वेस्टर्न ट्रूप्स
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन से कहा है कि अगर युद्ध खत्म करना है, तो तीन सबसे अहम बातें माननी होंगी- डोनबास को पूरी तरह खाली करना, नाटो सदस्यता की इच्छा को छोड़ना, और पश्चिमी देशों की सेनाओं को यूक्रेनी ज़मीन से दूर रखना।
पहले उन्होंने चार बड़े इलाकों की मांग की थी- डोनेट्स्क, लुहान्स्क, जापोरिज्झिया और खेरसोन। लेकिन अब उनका रुख कुछ नरम होता दिख रहा है। अब सिर्फ डोनबास के बचे हिस्से की मांग की जा रही है, जो अभी भी यूक्रेन के कब्जे में है।
इसके बदले पुतिन ने यह संकेत भी दिया है कि वे जापोरिज्झिया और खेरसोन में आगे बढ़ना फिलहाल रोक देंगे। रूस फिलहाल डोनबास का करीब 88% और दक्षिणी इलाकों का लगभग 73% भाग नियंत्रित कर चुका है।
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“हम कुछ इलाक़े छोड़ सकते हैं”- रूस ने दिखाया लचीलापन
एक बेहद दिलचस्प मोड़ यह है कि पुतिन कुछ छोटे लेकिन संवेदनशील इलाकों जैसे खारकीव, सुमी और डनिप्रोपेत्रोव्स्क से पीछे हटने को तैयार हैं। हालांकि ये संकेत अभी पूरी तरह आधिकारिक नहीं हैं, लेकिन यह संकेत ज़रूर हैं कि रूस अब इस जंग को किसी समझौते के रास्ते खत्म करना चाहता है।
इसके साथ ही, पुतिन अब भी इस पर अड़े हैं कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा, और नाटो का विस्तार पूर्व की ओर रोका जाए। यही नहीं, किसी भी शांति समझौते में यह कानूनी गारंटी होनी चाहिए कि पश्चिमी सैनिक यूक्रेन की ज़मीन पर तैनात नहीं होंगे।
यह आत्मसमर्पण नहीं, आत्मसम्मान की लड़ाई- जेलेंस्की
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने एक बार फिर पुतिन की शर्तों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि यूक्रेन कभी भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त अपने किसी भी भूभाग से पीछे नहीं हटेगा। उनके अनुसार डोनबास यूक्रेन की रक्षा की पहली दीवार है, और अगर ये दीवार टूटी, तो पूरा देश खतरे में पड़ सकता है।
जेलेंस्की ने स्पष्ट कहा कि नाटो सदस्यता यूक्रेन के संविधान में दर्ज एक रणनीतिक लक्ष्य है, जिसे छोड़ा नहीं जा सकता। उनका कहना है, “हम अपनी सुरक्षा के लिए किसी और से इजाज़त नहीं लेंगे कि हम कौन-से गठबंधन में शामिल हो सकते हैं और कौन-से में नहीं।”
ट्रंप की शांति की कोशिश, क्या वो मध्यस्थ बन पाएंगे?
इस पूरे तनाव भरे माहौल में एक नाम और चर्चा में है- डोनाल्ड ट्रंप। अमेरिका के राष्ट्रपति अब खुद को एक “शांति-स्थापक” के रूप में देखना चाहते हैं। ट्रंप ने अलास्का में पुतिन से मुलाक़ात के बाद कहा कि उन्हें भरोसा है, यह जंग अब खत्म हो सकती है।
उनका दावा है कि वे पुतिन और जेलेंस्की के बीच सीधी बातचीत कराने की योजना पर काम कर रहे हैं, और अगर बात बनी, तो अमेरिका, रूस और यूक्रेन की त्रिपक्षीय वार्ता हो सकती है। हालांकि उनके इन प्रयासों पर अभी अंतरराष्ट्रीय समुदाय पूरी तरह सहमत नहीं है, लेकिन कुछ हलचल तो जरूर दिख रही है।
यूरोपीय देशों की चिंता- कहीं यह नई चाल तो नहीं?
फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देश अब भी पुतिन की बातों पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रहे। उनके अनुसार रूस की यह कथित लचीलापन सिर्फ एक रणनीति है, ताकि वह अपनी स्थिति मजबूत कर सके और जंग को खींचता रहे।
वहीं रूस की तरफ से एक नया सवाल उठाया गया है- क्या जेलेंस्की अब वैध राष्ट्रपति हैं? पुतिन का तर्क है कि उनका कार्यकाल मई 2024 में खत्म हो चुका है, इसलिए उनकी वैधता पर सवाल है। लेकिन यूक्रेन का जवाब साफ है- जंग के दौरान चुनाव संभव नहीं, और जब तक जंग खत्म नहीं होती, जेलेंस्की राष्ट्रपति बने रहेंगे।
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