Himachal Disaster: हिमाचल प्रदेश, जिसे हम सब पहाड़ों की रानी, देवभूमि और प्राकृतिक सौंदर्य का खज़ाना मानते हैं, इन दिनों एक ऐसी त्रासदी से गुज़र रहा है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। लोगों के घर, खेत, जानवर, रोज़गार और सबसे कीमती- इंसानी ज़िंदगियाँ, सब कुछ मानो बादलों के कहर और पहाड़ों के टूटते धैर्य के नीचे दब गए हों। यह कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं है, यह उन टूटते दिलों, बहते आंसुओं और बर्बाद होती उम्मीदों की है, जो आज हिमाचल के हर कोने में गूंज रही है।
427 जानें गईं, सैकड़ों अब भी लापता
हिमाचल प्रदेश में इस बार की बारिश ने अपने साथ जो तबाही लाई, वह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं रही। 19 सितंबर तक, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की रिपोर्ट के अनुसार 427 लोगों की जान जा चुकी है, और 46 लोग अब भी लापता हैं। सबसे दुखद बात यह है कि इनमें से 242 मौतें सीधी तौर पर बारिश से जुड़ी घटनाओं जैसे भूस्खलन, बाढ़, और बिजली गिरने के कारण हुई हैं।
इन आकड़ों के पीछे जो कहानी है, वह और भी ज्यादा दर्दनाक है। किसी का बेटा मलबे में दब गया, किसी की मां बाढ़ में बह गई, तो कोई अब तक अपने पिता की खोज में हर दरवाज़ा खटखटा रहा है। ये सिर्फ संख्या नहीं, पूरे परिवारों की बर्बादी की दास्तान है।
टूटे घर, उजड़ती ज़िंदगी
हिमाचल में अब तक 8,858 से अधिक घर पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इसका मतलब है कि हजारों लोग अब खुले आसमान के नीचे हैं, जिनकी छत कभी प्यार, सुरक्षा और सुख का प्रतीक हुआ करती थी, वो अब मलबे में बदल चुकी है।
उन घरों की दीवारों पर अब ताजगी की बजाय कीचड़ के निशान हैं, और आंगन में बच्चों की खिलखिलाहट की जगह अब सन्नाटा पसरा है। गाँव के गाँव ऐसे उजड़ गए हैं मानो ज़मीन ने खुद उन्हें निगल लिया हो।
बेज़ुबान भी बने त्रासदी का शिकार
इस प्राकृतिक आपदा में सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि हजारों मवेशी और पोल्ट्री पक्षी भी जान गंवा बैठे। अब तक 2,478 मवेशियों और 26,955 पोल्ट्री पक्षियों की मौत हो चुकी है। कई किसान ऐसे हैं जिनकी पूरी आजीविका ही इन जानवरों पर निर्भर थी। उनके लिए ये सिर्फ पशु नहीं थे, बल्कि परिवार का हिस्सा थे।
अब उन खाली पशुशालाओं में सिर्फ सिसकियाँ गूंज रही हैं।
ढहती दुकानें, रुका जीवन
बारिश और भूस्खलन की वजह से 584 दुकानें और 7,048 पशुशालाएं पूरी तरह से नष्ट हो चुकी हैं। ये दुकानें सिर्फ व्यापार का जरिया नहीं थीं, बल्कि किसी का सपना थीं, किसी का मेहनत से खड़ा किया गया भविष्य।
हजारों लोगों का रोजगार छिन गया है। अब लोगों को दो वक़्त की रोटी जुटाना भी संघर्ष बन गया है। कहीं रसोई में चूल्हा नहीं जल रहा, तो कहीं किताबें मिट्टी में दब चुकी हैं।
इस आपदा में हजारों करोड़ का नुकसान
हिमाचल को अब तक की इस आपदा में 4,754 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। ये सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत, योजनाओं और विकास की रफ्तार पर ब्रेक है।
राज्य में अब भी 3 राष्ट्रीय राजमार्ग और 422 अन्य सड़कें बंद पड़ी हैं। लोग अपने गांवों में फंसे हुए हैं, किसी को इलाज चाहिए, किसी को राशन, लेकिन रास्ते ही बंद हैं। 107 विद्युत ट्रांसफॉर्मर और 185 जलापूर्ति परियोजनाएं ठप पड़ी हैं, जिससे आम आदमी की तकलीफ और भी बढ़ गई है।
थम रही बारिश, लेकिन घाव गहरे हैं
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, राहत और बचाव कार्य तेज़ी से चल रहे हैं। प्रशासन हर संभव कोशिश कर रहा है कि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जाए, और ज़रूरी सुविधाएं बहाल की जाएं।
मौसम विभाग की मानें तो अब मॉनसून कमजोर पड़ने लगा है। 20 सितंबर से प्रदेश में आसमान साफ़ रहने की उम्मीद है। कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश की आशंका है, लेकिन कोई विशेष अलर्ट जारी नहीं किया गया है।
ये खबर थोड़ी राहत ज़रूर देती है, लेकिन जो नुक़सान हो चुका है, उसकी भरपाई आसान नहीं।
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