विपक्ष के उपराष्ट्रपति कैंडिडेट होंगे रिटायर्ड जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी, सीपी राधाकृष्णन से मुकाबला, किसका पलड़ा भारी?

B Sudarshan Reddy

नई दिल्ली: देश की राजनीति एक बार फिर दिलचस्प मोड़ पर है। इस बार मुकाबला संवैधानिक गरिमा से जुड़े सबसे अहम पदों में से एक- उपराष्ट्रपति पद का है। जहां एक ओर केंद्र की सत्ता में काबिज NDA ने अपने अनुभवी नेता और महाराष्ट्र के वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है, वहीं विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और ईमानदारी का चेहरा रहे रिटायर्ड जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया है।

यह मुकाबला केवल दो व्यक्तित्वों के बीच नहीं है, बल्कि यह देश की राजनीति में न्यायिक मूल्यों और प्रशासनिक अनुभव के टकराव का प्रतीक बन चुका है। दिलचस्प बात यह भी है कि इस बार यह चुनाव ‘उत्तर बनाम दक्षिण’ नहीं, बल्कि ‘दक्षिण बनाम दक्षिण’ की कहानी कह रहा है।

जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी

79 वर्षीय जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का जीवन न्याय और सेवा की मिसाल रहा है। उनका जन्म 8 जुलाई 1946 को संयुक्त आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने बीए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद न्यायिक सेवा में कदम रखा। साल 1995 में वे आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जज बने और फिर 2005 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए।

उनका न्यायिक करियर तब शिखर पर पहुंचा जब वे 2007 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने। 2011 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने अपनी सेवाएं गोवा के पहले लोकायुक्त के रूप में दीं। ऐसे में उनका उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनना सिर्फ एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि लोकतंत्र में न्याय और नैतिकता की वापसी की उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है।

NDA के प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन

दूसरी ओर NDA के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का प्रशासनिक अनुभव भी कम नहीं है। वे वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं और तमिलनाडु से आते हैं। भाजपा की राजनीति में उनका कद लंबे समय से मजबूत रहा है। 17 अगस्त को जब भाजपा ने उन्हें अपने उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया, तभी से यह स्पष्ट हो गया कि NDA इस बार भी अपने पुराने रुख पर कायम रहते हुए एक अनुभवी नेता को मैदान में उतार रही है।

New Delhi, Aug 18 (ANI): Maharashtra Governor and NDA candidate for Vice Presidential post, CP Radhakrishnan meets Prime Minister Narendra Modi, in New Delhi on Monday. (ANI Photo)

NDA के लिए यह मुकाबला जीत की तरफ एक और कदम है, क्योंकि संसद में उनकी संख्या अभी भी विपक्ष से कहीं अधिक है।

बहुमत का गणित NDA के पक्ष में

उपराष्ट्रपति पद के लिए वोटिंग 9 सितंबर को होगी और उसी दिन नतीजा भी आएगा। नामांकन की अंतिम तिथि 21 अगस्त है और उम्मीदवारी वापस लेने की आखिरी तारीख 25 अगस्त तय की गई है।

फिलहाल लोकसभा में 542 सीटों में से एक सीट खाली है। NDA के पास 293 सांसद हैं। राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं, जिनमें से 5 खाली हैं और NDA के पास 129 सांसद हैं। इस आंकड़े के आधार पर NDA को 422 सांसदों का समर्थन हासिल है, जबकि जीत के लिए सिर्फ 391 वोटों की जरूरत है। इससे यह स्पष्ट होता है कि NDA के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है।

हालांकि, राजनीति में हर मोड़ अप्रत्याशित हो सकता है।

क्यों खास है ये टक्कर?

इस चुनाव की सबसे दिलचस्प बात यह है कि दोनों उम्मीदवार दक्षिण भारत से आते हैं। रिटायर्ड जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी आंध्रप्रदेश से हैं और सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु से। ऐसे में ये मुकाबला न केवल दो विचारधाराओं का है, बल्कि दक्षिण भारत की राजनीति में बढ़ते महत्व को भी दर्शाता है।

साथ ही, यह टक्कर एक ऐसे समय में हो रही है जब उपराष्ट्रपति पद पर पहले से आसीन जगदीप धनखड़ ने अचानक 21 जुलाई की रात अपना इस्तीफा दे दिया। उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था, इसलिए ये चुनाव समय से पहले हो रहा है।

क्या है विपक्ष की रणनीति?

I.N.D.I.A गठबंधन ने जस्टिस रेड्डी का नाम देकर एक स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है — वे प्रशासन और न्याय व्यवस्था से जुड़े अनुभव को देश की शीर्ष संवैधानिक संस्थाओं में स्थान देना चाहते हैं। पहले इस पद के लिए ISRO साइंटिस्ट या DMK सांसद टी. शिवा के नाम पर भी चर्चा चल रही थी, लेकिन अंतिम फैसला जस्टिस रेड्डी के पक्ष में हुआ।

यह फैसला विपक्षी एकता की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है, जो आगामी लोकसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में उनके इरादों को साफ करता है।

क्या विपक्ष को मिल सकता है समर्थन?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से बात कर NDA उम्मीदवार के लिए समर्थन मांगा है। वहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी बयान दिया है कि वे सीपी राधाकृष्णन को निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुने जाने की कोशिश में हैं। हालांकि, विपक्षी दलों की स्थिति अब तक इस दिशा में साफ नहीं हुई है।

विपक्ष भले ही आंकड़ों में पीछे हो, लेकिन उनके उम्मीदवार की छवि और न्यायपालिका से जुड़ा अनुभव उन्हें राजनीतिक रूप से मजबूत बना सकता है।

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