उत्तरकाशी में नहीं मिला बादल फटने का सबूत, मौसम विभाग ने भेजी रिपोर्ट, फिर क्या थी इस तबाही की वजह?

Uttarkashi flood
Uttarkashi flood

नई दिल्ली: उत्तराखंड की पवित्र और शांत वादियां, जो आमतौर पर श्रद्धालुओं और सैलानियों से भरी रहती हैं, बीते दिनों अचानक एक दर्दनाक और भयावह आपदा की गवाह बन गईं। उत्तरकाशी जिले के धराली क्षेत्र में खीर गंगा नदी का रौद्र रूप देखकर गांव वालों की रूह कांप उठी। तेज बहाव, बाढ़ जैसी स्थिति और चारों तरफ मची अफरा-तफरी ने देखते ही देखते एक शांत गांव को मातम में बदल दिया।

लोगों की चीखें, बहते मकान, टूटती सड़कें और उजड़ते आशियाने… सब कुछ किसी डरावने सपने जैसा लग रहा था। शुरुआत में बताया गया कि इस तबाही की वजह बादल फटना था, लेकिन अब मौसम विभाग की रिपोर्ट ने पूरी तस्वीर ही बदल दी है।

मौसम विभाग का इनकार: नहीं फटा कोई बादल

देहरादून स्थित भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र ने साफ तौर पर कहा है कि उत्तरकाशी के धराली में जिस दिन आपदा आई, उस दिन वहां कहीं भी बादल फटने की घटना नहीं हुई। वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक रोहित थपलियाल के अनुसार, उस दिन अधिकतम 30 से 40 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी, जो औसत हल्की से मध्यम बारिश की श्रेणी में आती है।

असल में, जब कोई बादल फटता है, तो एक घंटे के भीतर ही 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश दर्ज होती है। यह न केवल भारी बारिश कहलाती है, बल्कि बेहद संकरे क्षेत्र में होती है, जिससे तात्कालिक बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं हो जाती हैं। लेकिन उत्तरकाशी में उस दिन ऐसा कोई भी रिकॉर्ड नहीं मिला, जिससे ये साफ हो गया कि बादल फटने की खबरें महज अफवाह थीं या अनुमान पर आधारित थीं।

कहीं टूट गई कोई झील या पिघल गया ग्लेशियर?

अब जब यह स्पष्ट हो गया है कि बादल नहीं फटा, तो सवाल उठता है- आखिर तबाही की वजह क्या थी? मौसम विभाग ने इस सवाल के जवाब में अपनी रिपोर्ट दिल्ली भेज दी है और दो संभावनाएं सामने रखी हैं जो उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में आई आपदा की वजह हो सकती हैं।

पहली संभावना यह है कि किसी ऊपरी पहाड़ी इलाके में अस्थायी रूप से कोई झील बनी हो, जो लगातार बारिश और प्राकृतिक दबाव के कारण अचानक टूट गई हो। जब कोई ऐसी झील टूटती है, तो नीचे की तरफ पानी का सैलाब भारी रफ्तार से दौड़ता है और रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर देता है।

दूसरी आशंका यह है कि किसी ग्लेशियर का तेजी से पिघलना इस आपदा का कारण बना हो। उत्तरकाशी और उसके आसपास के इलाकों में कई बड़े और संवेदनशील ग्लेशियर हैं। यदि अचानक तापमान में वृद्धि हुई हो या बारिश के कारण बर्फ कमजोर हुई हो, तो एक विशाल मात्रा में पानी नीचे की ओर बह सकता है, जो सामान्य नदी प्रवाह से कहीं ज्यादा खतरनाक साबित होता है।

प्रशासन अलर्ट पर, लेकिन डर अभी बाकी है

उत्तरकाशी में हुए इस हादसे के बाद प्रशासन पूरी तरह से सतर्क हो चुका है। राहत और बचाव कार्य तेज़ी से चलाए गए, सेना और NDRF की टीमें मौके पर पहुंचीं और जिन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना था, उन्हें निकाला गया। लेकिन स्थानीय लोगों के मन में अब भी डर बना हुआ है- कहीं ये किसी और बड़ी आपदा की शुरुआत तो नहीं?

धराली जैसे पहाड़ी क्षेत्र में पहले भी कई बार प्रकृति का कहर देखने को मिला है, लेकिन जब तक सटीक वैज्ञानिक रिपोर्ट सामने नहीं आती, तब तक लोगों के मन में यह सवाल बना रहेगा कि “अब आगे क्या?”

भावनाओं में बहकर फैलाई गईं गलत खबरें?

सोशल मीडिया और कुछ मीडिया संस्थानों ने शुरुआत में बादल फटने की खबर तेजी से फैलाई। इससे न केवल भ्रम की स्थिति पैदा हुई, बल्कि इससे राहत कार्यों को भी दिशा देने में दिक्कतें आईं। यही वजह है कि अब विशेषज्ञ लगातार अपील कर रहे हैं कि जब तक आधिकारिक पुष्टि न हो, तब तक किसी भी आपदा को लेकर अनुमान न लगाया जाए।

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