टीम इंडिया के करोड़ों फैन्स के लिए नीली जर्सी सिर्फ एक यूनिफॉर्म नहीं, बल्कि गर्व और जुनून की पहचान है। हर बार जब खिलाड़ी मैदान पर उतरते हैं, तो करोड़ों दिल उनके साथ धड़कते हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि भारतीय क्रिकेट टीम की ये ब्लू जर्सी, जो खिलाड़ियों के लिए सौभाग्यशाली है, वही जर्सी इसके स्पॉन्सर्स के लिए बुरा सपना बन जाती है?
बात थोड़ी अजीब लग सकती है, लेकिन आंकड़े और घटनाएं कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रही हैं। बीते दो दशकों में टीम इंडिया की जर्सी पर जिन-जिन कंपनियों का नाम छपा, उनमें से अधिकतर को या तो भारी नुकसान झेलना पड़ा या वे कानूनी जाल में फंस गईं। क्या ये केवल इत्तेफाक है, या फिर टीम इंडिया की जर्सी स्पॉन्सरशिप वाकई ‘पनौती’ बन गई है?
ड्रीम11: एक और नाम, एक और संकट
2023 में ड्रीम11 ने जब टीम इंडिया की जर्सी पर अपनी जगह बनाई, तो कंपनी को लगा कि यह उसके लिए ब्रांडिंग का सबसे सुनहरा मौका है। लेकिन किसे पता था कि यह साझेदारी एक उलझी हुई कानूनी लड़ाई में बदल जाएगी।
2025 में पारित हुआ “ऑनलाइन गेमिंग विनियमन विधेयक” ड्रीम11 जैसे रियल मनी गेमिंग प्लेटफॉर्म के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। यह विधेयक साफ तौर पर ऐसे सभी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाता है, जिनमें असली पैसों की लेन-देन होती है, चाहे वे स्किल-बेस्ड हों या लक-बेस्ड। ड्रीम11, जो स्किल-बेस्ड फैंटेसी गेम्स के लिए जाना जाता है, अब इस कानून के दायरे में आ चुका है। लोकसभा और राज्यसभा में विधेयक पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मुहर के बाद ड्रीम11 का कारोबार पूरी तरह से बंद हो सकता है।
इतना ही नहीं, कंपनी पर पहले भी 1200 करोड़ की जीएसटी चोरी का आरोप लग चुका है। ऐसे में टीम इंडिया की जर्सी के साथ जुड़ने का यह सौदा ड्रीम11 के लिए ‘बुरे दिन’ की शुरुआत जैसा साबित हो रहा है।
सहारा: एक दौर का सम्राट, आज इतिहास
अगर आप 90 और 2000 के दशक के क्रिकेट फैन हैं, तो सहारा इंडिया का लोगो तो आपकी आंखों के सामने अब भी घूमता होगा। 2001 से 2013 तक सहारा ने टीम इंडिया की जर्सी को स्पॉन्सर किया और यह साझेदारी भारत के क्रिकेट इतिहास के कुछ सबसे यादगार पलों की गवाह बनी।
लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। सहारा पर हजारों करोड़ के फंड को लेकर सेबी ने कार्रवाई की। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी के बाद संस्थापक सुब्रत रॉय को जेल जाना पड़ा। 2023 में उनके निधन के बाद भी निवेशकों का पैसा अब तक अटका हुआ है। एक वक्त का यह बिजनेस साम्राज्य अब सिर्फ अदालतों और खबरों की फाइलों में बचा है।
स्टार इंडिया: ग्लैमर भरा नाम, फिर भी संकट से नहीं बच
2014 में जब स्टार इंडिया ने टीम इंडिया की जर्सी पर अपना लोगो लगाया, तब क्रिकेटर्स की नई पीढ़ी कोहली, रोहित, रहाणे अपने शिखर की ओर बढ़ रही थी। स्टार की छवि भी उस समय सबसे ताकतवर मीडिया ब्रांड्स में से एक थी।
लेकिन कुछ ही सालों में स्टार को प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच का सामना करना पड़ा। बाजार में प्रभुत्व के दुरुपयोग और अनैतिक व्यापार प्रथाओं के आरोप लगे। बाद में हॉटस्टार को जियो के साथ मर्ज करने की नौबत आ गई, जो स्टार के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। एक और बार टीम इंडिया की जर्सी पर छपी पहचान किसी कंपनी के लिए संकट का संकेत बन गई।
ओप्पो: तकनीक की चमक भी नहीं बचा सकी
चीन की मोबाइल कंपनी ओप्पो ने 2017 में भारी-भरकम रकम खर्च करके जर्सी स्पॉन्सरशिप हासिल की। डील की रकम थी करीब 1079 करोड़ रुपये, जो उस समय एक रिकॉर्ड थी। लेकिन यह रिकॉर्ड भी कंपनी के बिजनेस को बचा नहीं सका।
कम रिटर्न्स, कानूनी लड़ाइयाँ और पेटेंट विवादों में उलझकर ओप्पो को समय से पहले यह डील खत्म करनी पड़ी। इसके बाद बायजूस ने उसकी जगह ली, लेकिन उसकी कहानी और भी दुखद निकली।
बायजूस: उड़ान से सीधे फ्री फॉल
2020 में जब बायजूस ने टीम इंडिया की जर्सी पर जगह पाई, तो यह एक उभरते हुए यूनिकॉर्न की पहचान थी। एजुकेशन टेक्नोलॉजी में बायजूस सबसे आगे था, लेकिन इस स्पॉन्सरशिप के बाद मानो उस पर ग्रहण लग गया।
वित्तीय घाटा, कर्मचारियों की छंटनी, नियामक जांच और अदालतों में लंबी लड़ाइयों के चलते बायजूस अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। बीसीसीआई को भुगतान में चूक के चलते एनसीएलटी तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा। जिस कंपनी को भविष्य का एडटेक लीडर माना जा रहा था, वह अब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है।
क्या ब्लू जर्सी वाकई पनौती है?
सवाल उठता है: क्या यह सब महज संयोग है? या फिर टीम इंडिया की जर्सी पर छपना किसी कंपनी के लिए वरदान नहीं, बल्कि एक अघोषित ‘कुचक्र’ बन गया है?
बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है, और इसके साथ जुड़ना हर ब्रांड का सपना होता है। लेकिन पिछले 20 सालों में जिस भी कंपनी ने इसकी जर्सी पर जगह पाई, उसे किसी न किसी आर्थिक या कानूनी संकट से गुजरना पड़ा।
यह सच है कि क्रिकेट, खासकर भारतीय क्रिकेट, ब्रांड्स के लिए विशाल एक्सपोजर और पहचान का माध्यम है। लेकिन शायद इसी एक्सपोजर के साथ आता है एक भारी दबाव, एक ऐसा भार जिसे हर कंपनी संभाल नहीं पाती।
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