आज से करीब 15 साल पहले, अगर किसी ने आपसे कहा होता कि एक डिजिटल करेंसी आएगी जो न बैंकों से जुड़ेगी, न सरकारों से, और उसकी कीमत लाखों में नहीं, करोड़ों में पहुंचेगी तो शायद आप हंस देते। लेकिन 2025 में आज हम उसी हकीकत के सामने खड़े हैं। बिटकॉइन की कीमत ₹1.08 करोड़ के पार जा चुकी है।
यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी, भरोसे और एक रहस्यमयी सोच का नतीजा है- जिसका नाम था सतोशी नाकामोतो। एक ऐसा नाम जिसे किसी ने देखा नहीं, जाना नहीं, लेकिन जिसने दुनिया की फाइनेंशियल सोच ही बदल दी।
जब दुनिया संकट में थी, तब जन्मा बिटकॉइन
2008 का साल पूरी दुनिया के लिए परेशानियों से भरा था। बैंक डूब रहे थे, लोगों की जमा पूंजी खत्म हो रही थी, और आम इंसान अपनी मेहनत की कमाई के लिए संघर्ष कर रहा था। उसी वक्त, इंटरनेट की गहराइयों में एक व्हाइटपेपर सामने आया- “Bitcoin: A Peer-to-Peer Electronic Cash System”।
इस पेपर को लिखने वाला कोई आम लेखक नहीं था। उसका नाम था सतोशी नाकामोतो लेकिन यह सिर्फ एक नाम था। असल में यह इंसान कौन है, क्या कोई ग्रुप है या कोई गुप्त संगठन, यह आज तक एक रहस्य है।
3 जनवरी 2009 को इस व्हाइटपेपर के आधार पर बना पहला बिटकॉइन ब्लॉक, जिसे “जेनिसिस ब्लॉक” कहा जाता है, माइन किया गया। और यहीं से दुनिया की सबसे पहली क्रिप्टोकरेंसी का जन्म हुआ।
10,000 बिटकॉइन से मंगाया गया खाना
बिटकॉइन का नाम आते ही एक किस्सा हर बार सामने आता है पिज्जा वाला किस्सा। 22 मई 2010 को फ्लोरिडा के एक प्रोग्रामर लास्जलो हैन्येज़ ने एक फोरम पर पोस्ट किया, “मैं 10,000 बिटकॉइन के बदले दो पिज्जा खरीदना चाहता हूं।”
उन्हें जवाब मिला जेरेमी स्टर्डिवेंट नाम के एक युवा से। उन्होंने पापा जॉन्स से दो पिज्जा मंगवाए और लास्जलो को भेजे। बदले में उन्हें मिले 10,000 बिटकॉइन। यह इतिहास का पहला बिटकॉइन ट्रांजैक्शन बन गया।
उस समय बिटकॉइन की कुल कीमत मात्र $41 थी। लेकिन आज उन 10,000 बिटकॉइन की कीमत ₹10,000 करोड़ से भी ज़्यादा है। हर साल 22 मई को दुनिया भर में इसे “Bitcoin Pizza Day” के रूप में मनाया जाता है- दुनिया के सबसे महंगे पिज्जा की याद में।
सतोशी नाकामोतो: एक नाम, एक रहस्य, एक क्रांति
सतोशी नाकामोतो… यह नाम जितना जाना-पहचाना है, उतना ही रहस्यमयी भी। किसी को नहीं पता कि वो असल में थे कौन। क्या वो जापान से थे? या फिर अमेरिका से? क्या वो एक इंसान थे या एक पूरा ग्रुप?
उन्होंने 2008 में बिटकॉइन का विचार पेश किया, फिर 2009 में इसे लॉन्च किया, डेवलपर्स से बात की, सलाह दी… और फिर 2011 में अचानक गायब हो गए।
एक आखिरी ईमेल में उन्होंने लिखा, “मैं अब दूसरी चीजों पर काम कर रहा हूं। बिटकॉइन अच्छे हाथों में है।”
और फिर वे इंटरनेट से हमेशा के लिए चले गए।
उनका वॉलेट आज भी एक्टिव है, जिसमें 11 लाख से ज्यादा बिटकॉइन हैं जिसकी कीमत अरबों डॉलर में है। लेकिन आज तक एक भी बिटकॉइन उन्होंने खर्च नहीं किया। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने ये दुनिया बदलने के लिए बनाया और फिर शांत होकर पीछे हट गए।
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सतोशी ने क्यों खुद को दुनिया से छिपा लिया?
शायद सुरक्षा की चिंता रही होगी। एक ऐसी करेंसी बनाना जो दुनिया की मौजूदा फाइनेंशियल व्यवस्था को चुनौती दे सरकारें, बैंक, संस्थाएं सभी इसे खतरा मान सकती थीं। सतोशी को डर था कि अगर उनकी पहचान सामने आती, तो उन्हें निशाना बनाया जा सकता था।
दूसरी वजह यह हो सकती है कि वो बिटकॉइन को सच में डिसेंट्रलाइज्ड रखना चाहते थे—एक ऐसा सिस्टम जिसमें न कोई चेहरा हो, न कोई मालिक। अगर वह खुद सामने आते, तो लोग उनके फैसलों को फॉलो करने लगते और यह बिटकॉइन के मूल विचार के खिलाफ होता।
और हो सकता है, उन्होंने सिर्फ इसलिए गुमनामी चुनी ताकि चर्चा उनके ऊपर न होकर टेक्नोलॉजी पर हो।
ब्लॉकचेन: बिटकॉइन की रीढ़
बिटकॉइन सिर्फ एक डिजिटल कॉइन नहीं है, यह एक क्रांति है, और इसका दिल है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी।
ब्लॉकचेन को एक डिजिटल बहीखाता समझिए, जो पूरी दुनिया में हजारों कंप्यूटरों पर एक साथ चलता है।
जब आप किसी को बिटकॉइन भेजते हैं, यह लेनदेन ब्लॉकचेन पर दर्ज होता है, और दुनिया भर के माइनर्स इसे वेरिफाई करते हैं। कोई एक आदमी इस सिस्टम को कंट्रोल नहीं करता, इसलिए इसे हैक करना भी लगभग नामुमकिन है।
माइनिंग की प्रक्रिया को ऐसे समझें जैसे लाखों चाबियों के बीच से सही चाबी ढूंढना। जो इसे सबसे पहले ढूंढेगा, उसे पुरस्कार के रूप में बिटकॉइन मिलता है।
आज बिटकॉइन कहां खड़ा है?
- 2025 में बिटकॉइन ₹1.08 करोड़ के पार पहुंच गया है।
- यह अब सिर्फ एक इन्वेस्टमेंट नहीं, बल्कि एक पूरी फाइनेंशियल सोच बन गया है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के बड़े निवेश फंड्स और स्पॉट ETFs के पास अब लाखों बिटकॉइन हैं। वही बिटकॉइन, जिसकी शुरुआत एक पिज्जा से हुई थी।
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