नई दिल्ली: जब भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया, तो करोड़ों भारतीयों को उम्मीद थी कि पेट्रोल-डीजल के दाम कम होंगे, महंगाई थोड़ी थमेगी, और घर का बजट कुछ बेहतर हो पाएगा। लेकिन बीते तीन सालों की हकीकत ने इस उम्मीद को पूरी तरह झुठला दिया। सस्ता तेल आया, लेकिन उसका फायदा आम आदमी तक पहुंचने के बजाय सरकार और बड़ी तेल कंपनियों के पास चला गया। वहीं, रिफाइन की गई इस सस्ती ऊर्जा को विदेशी बाजारों में महंगे दामों पर बेचकर मुनाफा भी कमा लिया गया। इस पूरे खेल में आम आदमी की जेब खाली की खाली ही रही।
साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब भारत ने मौके का फायदा उठाते हुए रूस से भारी मात्रा में क्रूड ऑयल सस्ते में खरीदना शुरू किया। कभी 5 डॉलर, कभी 20 डॉलर तक का डिस्काउंट मिला। कई बार यह छूट 30 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंची। भारत ने इस मौके को खूब भुनाया, और 2025 तक रूस से आयात किए जाने वाले तेल की मात्रा 1.7% से बढ़कर 35% से भी ऊपर पहुंच गई।
लेकिन अफसोस इस बात का है कि जितना फायदा सरकार और तेल कंपनियों को मिला, उतना आम आदमी को नहीं मिला। लोगों ने पेट्रोल और डीजल के दाम में कोई बड़ी राहत नहीं देखी। रसोई गैस से लेकर ट्रांसपोर्ट तक, हर चीज पर खर्च लगातार बढ़ता गया।
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सरकार और कंपनियों की बढ़ी कमाई
भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स वसूली में कोई कमी नहीं की। पेट्रोल पर 13 रुपए और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूल की जा रही है। इसके अलावा राज्य सरकारें भी अपने-अपने तरीके से वैट लगाकर दामों को बढ़ाती हैं। कुल मिलाकर, पेट्रोल के दाम में करीब 46% और डीजल में 42% हिस्सा केवल टैक्स का होता है।
सरकार ने 2025 में ही सिर्फ एक्साइज ड्यूटी से 2.7 लाख करोड़ रुपए कमाए, और राज्य सरकारों की कमाई 2 लाख करोड़ रुपए के करीब रही। इतना ही नहीं, अप्रैल 2025 में जब सरकार ने एक्साइज ड्यूटी 2 रुपए और बढ़ाई, तब उसे 32,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई हो गई। यह सारी राशि सरकार के खजाने में चली गई, लेकिन आम जनता को इसका कोई सीधा लाभ नहीं मिला।
सरकारी तेल कंपनियों के मुनाफे में ऐतिहासिक उछाल
इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी सरकारी कंपनियों को भी रूस से सस्ते तेल का भरपूर फायदा हुआ। 2022-23 में इन तीनों कंपनियों ने मिलकर करीब 3,400 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया था। लेकिन 2023-24 में यह मुनाफा सीधे 25 गुना बढ़कर 86,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
हालांकि 2024-25 में ये मुनाफा घटकर 33,600 करोड़ रुपए हो गया, लेकिन यह अभी भी 2022 के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। इन आंकड़ों से साफ है कि सस्ते तेल का सबसे बड़ा लाभ इन तेल कंपनियों ने उठाया, लेकिन आम उपभोक्ता को इससे कोई सीधी राहत नहीं मिली।
प्राइवेट कंपनियां सस्ता तेल खरीदकर महंगे में बेच रही
भारत में दो प्रमुख प्राइवेट कंपनियां रिलायंस और नायरा एनर्जी रूस से सबसे ज्यादा सस्ता तेल खरीद रही हैं। 2025 की पहली छमाही में भारत ने रूस से 23.1 करोड़ बैरल क्रूड ऑयल खरीदा, जिसमें से 45% हिस्सेदारी सिर्फ इन दो कंपनियों की रही।
रिलायंस ने हर बैरल पर लगभग 12.5 डॉलर और नायरा ने 15.2 डॉलर का रिफाइनिंग मार्जिन हासिल किया। यानी इन कंपनियों ने सस्ते में तेल खरीदा, प्रोसेस किया, और फिर उसे पेट्रोल, डीजल, जेट फ्यूल जैसे प्रोडक्ट्स में बदलकर विदेशों में ऊंचे दाम पर बेचा।
2025 की पहली छमाही में इन कंपनियों ने करीब 6 करोड़ टन रिफाइंड प्रोडक्ट्स का निर्यात किया, जिसमें से 1.5 करोड़ टन यूरोपीय यूनियन को बेचा गया। यह व्यापार लगभग 15 अरब डॉलर का रहा। इसमें से आम भारतीय को कुछ नहीं मिला, लेकिन विदेशी बाजारों में भारत की रिफाइन की गई ऊर्जा बिकती रही।
रूस से तेल आयात का खेल क्यों खत्म नहीं हो सकता?
यह सवाल अक्सर उठता है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद क्यों नहीं करता। इसके पीछे कई कारण हैं।
रूस अब भी भारत को सबसे सस्ते दामों पर क्रूड देता है। भले ही डिस्काउंट अब कम होकर 3-6 डॉलर रह गया हो, लेकिन यह अब भी अन्य देशों से मिलने वाले तेल से सस्ता है।
इसके अलावा, भारत की कई कंपनियों के रूस के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स हैं, जिन्हें तोड़ना आसान नहीं। जैसे दिसंबर 2024 में रिलायंस ने 10 साल के लिए रोजाना 5 लाख बैरल तेल खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट किया।
भारत का तर्क है कि रूस से सस्ता तेल खरीदकर वह अपने देश की ऊर्जा जरूरतें सुलझा रहा है और वैश्विक बाजार में कीमतों को स्थिर बनाए रखने में भी योगदान दे रहा है। अगर भारत अचानक रूसी तेल खरीदना बंद कर दे, तो ग्लोबल मार्केट में सप्लाई घटेगी और कीमतें फिर से आसमान छू सकती हैं।
ट्रम्प की नाराज़गी और भारत पर टैरिफ का विवाद
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में भारत पर 50% टैरिफ लगाया है और इसका कारण रूस से तेल खरीद को बताया है। उनका कहना है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदता है, उसे रिफाइन करता है और फिर यूरोप और अमेरिका को महंगे में बेच देता है। ट्रम्प ने ये भी कहा कि भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध की परवाह नहीं है, बल्कि वह केवल व्यापार देख रहा है।
हालांकि भारत का कहना है कि उसका यह व्यापार पूरी तरह पारदर्शी है, और रूस से तेल खरीदकर वह किसी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं कर रहा। यूरोप खुद भी कभी बड़ी मात्रा में रूसी तेल खरीदता था, और जब भारत सस्ते में खरीदकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहा है, तो उसे गलत कैसे ठहराया जा सकता है?