पहली बार समुद्र में 5,000 मीटर नीचे गए भारतीय एक्वानॉट्स, जानें क्या है मिशन समुद्रयान ‘मत्स्य 6000’

Indian Aquanauts
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नई दिल्ली: कभी कल्पना कीजिए उस पल की, जब एक भारतीय वैज्ञानिक अंधेरे समुद्र की अथाह गहराई में 5,000 मीटर नीचे उतर रहा हो वहां जहां सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचती, जहां सिर्फ असीम शांति है और चारों ओर रहस्य ही रहस्य। यह कोई साइंस फिक्शन फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि हाल ही में घटित एक ऐतिहासिक सच है। भारत ने समुद्र के नीचे नई गहराइयों को छू लिया है, और यह सब हमारे अपने स्वदेशी समुद्रयान ‘मत्स्य 6000’ की तैयारी का हिस्सा है।

अंतरिक्ष की ऊंचाइयों को छूने के बाद भारत ने अब समुद्र की गहराइयों में भी इतिहास रच दिया है। 5 और 6 अगस्त 2025 को भारतीय एक्वानॉट्स ने फ्रांस के साथ मिलकर एक साझा मिशन में उत्तरी अटलांटिक महासागर में गहराई तक गोता लगाया।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के वैज्ञानिक राजू रमेश ने 5 अगस्त को पुर्तगाल के तट के पास समुद्र में 4,025 मीटर की गहराई तक डाइव की। इसके ठीक अगले दिन कमांडर जतिंदर पाल सिंह (रिटायर्ड) ने 5,002 मीटर की गहराई में प्रवेश करके भारत का नाम उस सूची में दर्ज करा दिया, जिसमें अब तक केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन शामिल थे।

यह केवल एक डाइव नहीं थी, यह भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं, आत्मनिर्भरता और भविष्य की नींव को समुद्र के तल तक मजबूती से स्थापित करने की शुरुआत थी।

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‘मत्स्य 6000’: गहराई में छिपे भविष्य का दरवाज़ा

इस पूरी ऐतिहासिक उपलब्धि का असली मकसद है भारत की अपनी पहली मानवयुक्त सबमर्सिबल ‘मत्स्य 6000’ की तैयारी। यह सबमर्सिबल 2027 में लॉन्च की जाएगी और 6,000 मीटर यानी 6 किलोमीटर गहराई तक जाकर समुद्र की सतह को छूने में सक्षम होगी।

मत्स्य 6000 केवल एक मशीन नहीं है, यह भारत की समुद्री खोजों की दिशा में एक विशाल छलांग है। यह टाइटेनियम एलॉय से बनी है, जिसका व्यास 2.1 मीटर है और इसमें तीन लोग बैठ सकते हैं। यह मशीन समुद्र के दबाव का 600 गुना भार सह सकती है और करीब 96 घंटे तक ऑक्सीजन सप्लाई देने की क्षमता रखती है।

भारत का यह समुद्रयान केवल वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा संकट और प्राकृतिक संसाधनों की खोज का भी समाधान बन सकता है।

सबमर्सिबल और पनडुब्बी: क्या फर्क है इन दोनों में?

आमतौर पर लोग पनडुब्बी और सबमर्सिबल को एक ही समझते हैं, लेकिन असल में इन दोनों में बड़ा अंतर होता है। पनडुब्बियां सतह पर भी चल सकती हैं और पानी के नीचे भी। ये खुद से संचालित होती हैं, आकार में बड़ी होती हैं और मिलिट्री ऑपरेशनों के लिए इस्तेमाल होती हैं।

वहीं, सबमर्सिबल पूरी तरह से समुद्र के नीचे काम करने के लिए डिजाइन की गई छोटी मशीन होती है। इसे किसी जहाज या प्लेटफॉर्म की मदद से समुद्र में भेजा जाता है। इसका उद्देश्य निगरानी नहीं, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान और खोज होता है। मत्स्य 6000 भी इसी श्रेणी की एक उन्नत सबमर्सिबल है।

समुद्र की गहराइयों में छिपा है अगला ‘सोना’

आज दुनिया इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की ओर बढ़ रही है, और उनके लिए सबसे जरूरी है ऐसी बैटरियां जो टिकाऊ और शक्तिशाली हों। इन बैटरियों को बनाने के लिए जिन तत्वों की जरूरत होती है जैसे लीथियम, कोबाल्ट, निकल, तांबा और मैगनीज उनकी मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन धरती पर उनका भंडार सीमित होता जा रहा है।

ऐसे में वैज्ञानिकों की नजरें अब समुद्र की गहराइयों पर टिक गई हैं। रिसर्च बताती है कि समुद्र की तलहटी में ये बहुमूल्य धातुएं भारी मात्रा में मौजूद हैं। अनुमान है कि अगले तीन साल में दुनिया को लीथियम की दोगुनी और कोबाल्ट की 70% अधिक जरूरत होगी। वहीं, 2030 तक यह मांग 5 गुना तक बढ़ सकती है।

इस मांग को पूरा करने के लिए समुद्र की गहराई में खुदाई और खनन अब भविष्य का एक बड़ा विकल्प बन चुका है। ‘मत्स्य 6000’ जैसे सबमर्सिबल इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, जो न केवल इन संसाधनों की खोज करेंगे, बल्कि भारत को इस रेस में आगे भी ले जाएंगे।

भारत की वैज्ञानिक शक्ति को मिला नया आयाम

यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं है, यह भारत की वैज्ञानिक सोच, आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ठोस कदम और वैश्विक स्तर पर भारत की उपस्थिति को मजबूत करने की पहल है।

जहां आज पूरा विश्व समुद्र की गहराइयों में अपने जवाब ढूंढ रहा है, भारत ने न सिर्फ जवाब खोजने की क्षमता दिखाई है, बल्कि उन्हें हासिल करने के लिए खुद की तकनीक विकसित करने का साहस भी दिखाया है।

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