आवारा कुत्तों को कैसे कंट्रोल करते हैं दुनिया के सभी देश? जानें कहां क्या है नियम और कानून

Stray Dogs
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हमारे आसपास जब कोई बच्चा या बुजुर्ग अचानक सड़क पर चलते वक्त किसी आवारा कुत्ते का शिकार हो जाता है, तो दिल दहल जाता है। हम सबने कभी न कभी सुना या देखा है कि किसी मासूम को कुत्ते ने काट लिया। डर, चिंता और गुस्से के बीच हम ये सोचते हैं कि आखिर इस समस्या का हल क्या है? क्या इन बेजुबानों को सड़कों से हटाना ही एकमात्र रास्ता है?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर दिए गए अपने फैसले में संशोधन किया है। कोर्ट ने पहले कहा था कि इन कुत्तों को शेल्टर में रखा जाए, लेकिन अब कहा गया कि उन्हें छोड़ दिया जाए। इससे फिर एक बार यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या सिर्फ भारत ही इस समस्या से जूझ रहा है? जवाब है- नहीं। ये समस्या वैश्विक है, और इससे निपटने के तरीके भी अलग-अलग हैं।

आइए जानें दुनिया के कुछ देशों ने इस चुनौती से कैसे निपटा किसी ने करुणा के साथ, तो किसी ने सख्ती से।

नीदरलैंड: जहां एक भी आवारा कुत्ता नहीं है

नीदरलैंड को इस मामले में दुनिया का सबसे अनुकरणीय देश कहा जा सकता है। यहां सड़कों पर एक भी आवारा कुत्ता नहीं दिखता और यह किसी हिंसक उपाय का परिणाम नहीं, बल्कि सरकार की दूरदृष्टि और करुणा का नतीजा है।

यहां की सरकार ने CNVR नीति अपनाई- Collect, Neuter, Vaccinate and Return, यानी कुत्तों को पकड़ना, उनकी नसबंदी और टीकाकरण करना और फिर वापस वहीं छोड़ देना। इस नीति ने वहां कुत्तों की अनियंत्रित आबादी पर पूरी तरह से लगाम लगा दी।

यहां पालतू जानवर पालने वाले लोगों के लिए भी सख्त नियम हैं। अगर कोई कुत्ते को सड़क पर छोड़ता है या देखभाल में कोताही करता है, तो भारी जुर्माना और जेल का प्रावधान है। इसके अलावा, नीदरलैंड ने पशु क्रूरता के खिलाफ कड़े कानून, और उनके पालन के लिए एक विशेष पशु सुरक्षा बल भी तैनात किया है।

मोरक्को: जहां हर साल लाखों लोगों को काटते हैं कुत्ते

उत्तर अफ्रीकी देश मोरक्को की स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण रही है। हर साल यहां करीब एक लाख लोग कुत्तों के काटने के मामले का शिकार होते हैं। इसके बावजूद, सरकार ने 2019 में TNVR (Trap, Neuter, Vaccinate, Release) कार्यक्रम की शुरुआत की कुत्तों को पकड़ना, नसबंदी और रेबीज का टीकाकरण कर उन्हें पहचान टैग के साथ फिर से छोड़ना।

इतना ही नहीं, सरकार ने 130 से अधिक सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यालय बनाए, जहां करीब 60 डॉक्टर, 260 नर्स और 130 से ज्यादा पशु चिकित्सक तैनात किए गए हैं। यह अभियान दिखाता है कि अगर इच्छा शक्ति हो, तो बड़े पैमाने पर भी मानवीय तरीके से बदलाव लाया जा सकता है।

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भूटान: पूरी तरह कुत्तों की नसबंदी की

भूटान की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। यह छोटा-सा देश अब दुनिया का पहला ऐसा देश बन चुका है, जहां सरकार ने आवारा कुत्तों की 100% नसबंदी कर दी है।

2022 में शुरू हुए इस कार्यक्रम में तीन चरणों में काम हुआ, जिसमें 61,680 कुत्तों की नसबंदी की गई और 3.55 मिलियन डॉलर की लागत आई। इसमें न केवल नसबंदी हुई, बल्कि टीकाकरण, चिकित्सा देखभाल और समुदाय में जागरूकता भी बढ़ाई गई।

यह भूटान के करुणा-आधारित दृष्टिकोण का प्रमाण है जिसमें वे जीवन का सम्मान करते हैं, फिर चाहे वह मानव हो या जानवर।

कंबोडिया: दो हफ्तों में 2.2 लाख कुत्तों का टीकाकरण

दक्षिण-पूर्वी एशिया का यह देश रेबीज की समस्या से जूझ रहा था। परंतु उन्होंने एक रक्षात्मक नहीं, बल्कि निवारक रणनीति अपनाई। केवल 14 दिनों में 2.2 लाख कुत्तों को रेबीज का टीका लगाकर एक रिकॉर्ड बना दिया गया।

कंबोडिया की सरकार ने यह समझा कि आवारा कुत्तों को मारना समाधान नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं और जिम्मेदार प्रशासन का विस्तार ही सच्चा समाधान है।

तुर्की: कानूनन दया और जिम्मेदारी

तुर्की ने आवारा कुत्तों को हटाने के लिए न सिर्फ मानवीय तरीका अपनाया, बल्कि उसे कानून का रूप भी दे दिया। यहां हर नगरपालिका को ये जिम्मेदारी सौंपी गई कि वह अपने इलाके के कुत्तों को टीका लगाए, नसबंदी करे, और उन्हें शेल्टर दे या गोद लेने की सुविधा दे।

यहां कानून कहता है कि किसी कुत्ते को सिर्फ उसी स्थिति में मारा जा सकता है जब वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो और इलाज संभव न हो।

तुर्की की सड़कों पर कुत्ते जरूर हैं, लेकिन वे असुरक्षित नहीं, बल्कि समाज का हिस्सा माने जाते हैं। दुकानदार और आम लोग उन्हें खाना देते हैं और बच्चों को जानवरों से संवेदनशीलता का पाठ सिखाया जाता है।

पाकिस्तान: तलवार से दिया गया जवाब

दूसरी ओर पाकिस्तान का हाल निराशाजनक रहा है। वहां के पंजाब प्रांत में जब आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ीं, तो जवाब बेहद कठोर और अमानवीय था।

मार्च 2024 में सिर्फ दो हफ्तों में 1,000 से अधिक कुत्तों को मार डाला गया। ऐसा करने का मकसद केवल समस्या का तात्कालिक हल निकालना था, लेकिन इससे न तो रेबीज रुका और न ही कुत्तों की संख्या स्थाई रूप से घटी।

यह दृष्टिकोण न केवल पशु अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि स्थायी समाधान की राह को भी नजरअंदाज करता है।

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