हर क्रिकेट प्रेमी के दिल में एक खास जगह रखने वाले चेतेश्वर पुजारा ने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। रविवार की सुबह जब उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने रिटायरमेंट की घोषणा की, तो सिर्फ शब्द नहीं थे, वो एक युग का अंत था। वो एक खिलाड़ी का आखिरी सलाम था, जिसने शोरगुल भरे खेल में हमेशा शांति से अपना काम किया, बिना किसी दिखावे के, सिर्फ देश के लिए।
चेतेश्वर पुजारा को जब भी देखा गया, तो उनके चेहरे पर हमेशा वही एक शांत मुस्कान थी, जो एक साधक की तरह लगती थी। उन्होंने जब 2010 में बेंगलुरु में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया था, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये खिलाड़ी एक दिन भारत के सबसे भरोसेमंद टेस्ट बल्लेबाज़ों में गिना जाएगा।
पुजारा ने कभी टी-20 की चकाचौंध का पीछा नहीं किया, उन्होंने कभी लाइमलाइट को नहीं तरजीह दी, उनका सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ एक चीज़ पर था- भारत के लिए रन बनाना, समय बिताना और विपक्षी टीम की नींदें उड़ाना।
100 से ज़्यादा टेस्ट, और एक बेमिसाल करियर
चेतेश्वर पुजारा का इंटरनेशनल करियर 15 साल लंबा रहा, जिसमें उन्होंने 103 टेस्ट मैच खेले। टेस्ट क्रिकेट में उन्होंने 7,195 रन बनाए, जिसमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं। उनकी औसत 43.60 रही, जो बताती है कि वो कितने स्थिर और विश्वसनीय खिलाड़ी थे।
उनका बेस्ट स्कोर रहा 206* रन, एक इनिंग जिसमें उन्होंने मैदान पर अपनी क्लास, धैर्य और साहस का प्रदर्शन किया। हालांकि वनडे क्रिकेट में उन्हें ज़्यादा मौके नहीं मिले और उन्होंने 5 वनडे में 51 रन ही बनाए, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनका योगदान अमूल्य रहा। पुजारा ने भारत के लिए कभी टी-20 इंटरनेशनल नहीं खेला, लेकिन उनका क्रिकेट प्रेम इस फॉर्मेट की सीमा से बहुत ऊपर था।
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वो पोस्ट जिसने दिलों को भावुक कर दिया
अपने रिटायरमेंट पोस्ट में पुजारा ने लिखा, “भारतीय जर्सी पहनना, राष्ट्रगान गाना और मैदान पर हर बार अपना बेस्ट प्रदर्शन करना एक ऐसा अनुभव था जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।” ये सिर्फ एक बयान नहीं था, ये उन सभी भारतीयों के लिए एक इमोशनल मोमेंट था, जो सालों से उन्हें टीवी स्क्रीन पर भारत को बचाते हुए देखते आए थे- कभी ऑस्ट्रेलिया की तेज़ गेंदबाज़ी के सामने दीवार बनकर खड़े होते, तो कभी इंग्लैंड की ग्रीन पिचों पर समय काटते।
क्रिकेट के ‘दीवार 2.0’ को हमारा सलाम
राहुल द्रविड़ के बाद जब भारतीय टीम को किसी ऐसे खिलाड़ी की ज़रूरत थी जो समय को थाम सके, जो एक छोर संभाल सके, जो बल्लेबाज़ी को फिर से परिभाषित कर सके तब चेतेश्वर पुजारा सामने आए। उन्होंने बल्ले से ऐसी कहानियाँ लिखीं जो स्कोरबोर्ड पर भले ही धीमी दिखें, लेकिन जीत की नींव वही बनती थीं।
उनकी शैली कभी आक्रामक नहीं रही, लेकिन उन्होंने सिखाया कि टेस्ट क्रिकेट एक आर्ट है और इस कला के वो मास्टर रहे।
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