क्या कोई भी महिला डोनेट कर सकती है ब्रेस्ट मिल्क? ज्वाला गुट्टा कर चुकीं हैं 30 लीटर, जानें नियम

क्या कोई भी महिला डोनेट कर सकती है ब्रेस्ट मिल्क? ज्वाला गुट्टा कर चुकीं हैं 30 लीटर, जानें नियम

Breast Milk Donation: भारत की बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा अपने खेल के लिए हमेशा सुर्खियों में रही हैं, लेकिन इस बार वह माँ बनने और एक संवेदनशील सामाजिक कदम उठाने के कारण चर्चा में हैं। हाल ही में उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया है, और इसके बाद उनके शरीर में जरूरत से अधिक मातृ दूध (ब्रेस्ट मिल्क) बन रहा था। इस अतिरिक्त दूध को उन्होंने फेंकने या नजरअंदाज करने के बजाय, दूसरे नवजातों के जीवन की रक्षा के लिए डोनेट करने का फ़ैसला लिया।

अब तक वह लगभग 30 लीटर से ज्यादा ब्रेस्ट मिल्क दान कर चुकी हैं, जो उन नवजात शिशुओं के लिए अमूल्य जीवनदायिनी मदद है जिनकी माताएं उन्हें दूध नहीं पिला सकतीं।

इस नेक कदम ने एक बार फिर से लोगों के बीच यह चर्चा छेड़ दी है कि आखिर मातृ दूध दान (Breast Milk Donation) से जुड़ी प्रक्रियाएं और नियम क्या हैं? कौन महिलाएं ऐसा कर सकती हैं? और इस दूध को कैसे संभाला और बाँटा जाता है?

क्या होता है ब्रेस्ट मिल्क डोनेशन और क्यों है ज़रूरी?

ब्रेस्ट मिल्क डोनेशन का मतलब है कि एक ऐसी माँ, जिसके शरीर में बच्चे की जरूरत से ज्यादा दूध बन रहा है, वह इसे निकालकर मिल्क बैंक में सुरक्षित रूप से जमा करती है ताकि जरूरतमंद बच्चों की मदद हो सके। यह विशेष रूप से उन नवजातों के लिए जीवनदायी होता है:

  • जिनकी मां की मृत्यु हो चुकी हो या माँ बीमार हो।
  • जिनकी मां को ब्रेस्टफीडिंग की समस्या हो।
  • जिनका जन्म अप्रेग्नेंसी (Premature) या कम वज़न के साथ हुआ हो और जिन्हें एनआईसीयू (NICU) में रखा गया हो।

ज्वाला गुट्टा का प्रेरणादायक निर्णय

ज्वाला गुट्टा ने यह दूध अमृतम फाउंडेशन के माध्यम से दान किया, जो नवजात शिशुओं को सुरक्षित मातृ दूध मुहैया कराता है। अपने सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा:

“मेरे शरीर में जो अतिरिक्त दूध बना, वह सिर्फ मेरी बेटी के लिए नहीं, बल्कि उन मासूमों के लिए भी है, जिनकी ज़िंदगी आज मेरी वजह से बच सकती है।”

उनकी यह पहल सिर्फ एक व्यक्तिगत योगदान नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाने वाला कदम है।

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कौन महिलाएं कर सकती हैं मातृ दूध दान?

हर महिला ब्रेस्ट मिल्क डोनेट नहीं कर सकती। इसके लिए कुछ विशेष मेडिकल और नैतिक नियम निर्धारित किए गए हैं:

स्वस्थ होना अनिवार्य है – दान देने वाली मां को किसी भी प्रकार की संक्रामक बीमारी नहीं होनी चाहिए, जैसे:

  • HIV/AIDS
  • हेपेटाइटिस B या C
  • टीबी
  • कोई अन्य संक्रामक रोग

दवा और धूम्रपान से दूरी – जो महिलाएं नशीले पदार्थ लेती हैं, या नियमित दवाएं ले रही हैं (जो दूध में ट्रांसफर हो सकती हैं), वे उपयुक्त नहीं मानी जातीं।

शिशु की ज़रूरत से अधिक दूध बनना चाहिए – माँ को पहले अपने बच्चे की ज़रूरत को प्राथमिकता देनी होती है। उसके बाद जो दूध अतिरिक्त बचे, वही दान किया जा सकता है।

फुल मेडिकल स्क्रीनिंग – मिल्क बैंक या अस्पताल द्वारा माँ का खून और स्वास्थ्य की पूरी जाँच की जाती है।

उम्र और प्रसव की स्थिति – हाल ही में मां बनी महिला (आमतौर पर 6 महीनों के भीतर) को प्राथमिकता दी जाती है।

कैसे किया जाता है ब्रेस्ट मिल्क का भंडारण?

ब्रेस्ट मिल्क को एक साफ, स्टरलाइज्ड ब्रेस्ट पंप की मदद से निकाला जाता है और फिर उसे विशेष बोतलों या थैलियों में सुरक्षित किया जाता है। इसके बाद:

  • Pasteurization – दूध को बैक्टीरिया रहित करने के लिए पाश्चराइज किया जाता है, ताकि यह सुरक्षित बने।
  • Deep Freeze Storage – दूध को -20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा जाता है।
  • Shelf Life – इस स्टोरेज कंडीशन में दूध 3 से 6 महीने तक सुरक्षित रहता है।
  • डिस्ट्रिब्यूशन – यह दूध खासतौर पर एनआईसीयू (NICU) में भर्ती नवजातों को दिया जाता है या उन बच्चों को जिनकी माँ दूध नहीं पिला सकती।

महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्रेस्ट मिल्क दान सिर्फ अधिकृत ह्यूमन मिल्क बैंक या अस्पताल के माध्यम से ही किया जा सकता है। व्यक्तिगत रूप से, बिना जांच या प्रोसेस के, यह न तो सुरक्षित है और न ही वैध।

भारत में कहां-कहां हैं ह्यूमन मिल्क बैंक?

भारत में पहला ह्यूमन मिल्क बैंक 1989 में मुंबई के सायन अस्पताल में शुरू किया गया था। तब से लेकर अब तक देश में लगभग 100 से अधिक ह्यूमन मिल्क बैंक बन चुके हैं, लेकिन देश की जनसंख्या और नवजात शिशुओं की संख्या को देखते हुए यह संख्या बहुत कम है।

कुछ प्रमुख ह्यूमन मिल्क बैंक:

  • सायन हॉस्पिटल, मुंबई
  • नीव ह्यूमन मिल्क बैंक, पुणे
  • SNCU मिल्क बैंक, जयपुर
  • Amritkaal Milk Bank, दिल्ली
  • Niloufer Hospital, हैदराबाद

विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में अभी भी मातृ दूध दान को लेकर पर्याप्त जागरूकता नहीं है, और इसी कारण लाखों नवजात उचित पोषण के बिना अपनी ज़िंदगी की शुरुआत करते हैं।

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