मुंबई: जब आप किसी ने नई शुरुआत की कहानी सुनते हैं, तो अक्सर उसमें संघर्ष, धैर्य और समय के साथ आया बदलाव होता है। कुछ ऐसा ही है बिटकॉइन की कहानी। एक ऐसी डिजिटल करेंसी, जिसकी शुरुआत 2009 में लगभग ‘0’ से हुई थी, आज उसकी कीमत ₹1.08 करोड़ के पार पहुंच गई है।
यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक विचार की विजय है, जो कभी एक कोड की तरह इंटरनेट के किसी कोने में जन्मा था। आज वो दुनिया भर के निवेशकों, तकनीकी जानकारों और आम लोगों के बीच डिजिटल क्रांति का प्रतीक बन चुका है।
बिटकॉइन की उड़ान: शून्य से करोड़ तक
अगर आपने 2009 में एक चाय के दाम जितना भी बिटकॉइन खरीदा होता, तो आज शायद आपके पास करोड़ों की संपत्ति होती। उस समय कोई भी नहीं जानता था कि कुछ सालों में यह डिजिटल मुद्रा दुनिया की सबसे चर्चित और कीमती संपत्तियों में गिनी जाएगी।
बिटकॉइन की पहली कीमत 2010 में 0.10 डॉलर (लगभग ₹8) थी। वहीं 2013 तक यह 1000 डॉलर के पार जा पहुंचा, और आज यह ₹1.08 करोड़ से ऊपर की छलांग लगा चुका है। इसकी कीमत में सिर्फ एक साल में ही ₹57 लाख का इजाफा हुआ है।
क्यों बढ़ रही है बिटकॉइन की कीमत?
बिटकॉइन का इतना ऊपर जाना कोई अचानक घटने वाली घटना नहीं है। इसके पीछे कई आर्थिक, राजनीतिक और तकनीकी बदलाव हैं जो इसके मूल्य को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं।
अमेरिका में ट्रम्प सरकार की क्रिप्टो-फ्रेंडली नीतियां जैसे बैंकों पर क्रिप्टो फर्मों के साथ काम करने से रोक हटाना, इसका एक बड़ा कारण है। इसके साथ ही बड़े-बड़े निवेशक और फंड अब बिटकॉइन में पैसा लगा रहे हैं। बिटकॉइन ETF (Exchange Traded Funds) को दुनिया के कई बाजारों में मंजूरी मिलने से इसकी विश्वसनीयता और मांग दोनों बढ़ गई है।
अब यह सिर्फ टेक्नोलॉजी प्रेमियों या गीक्स की चीज नहीं रही, बल्कि आज यह आम निवेशकों की भी पसंद बन चुकी है।
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बिटकॉइन क्या है और कैसे काम करता है?
बिटकॉइन कोई कागजी मुद्रा नहीं है, जिसे आप जेब में रखें। यह पूरी तरह डिजिटल है। इसे आप इंटरनेट के ज़रिए भेजते और प्राप्त करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे आप व्हाट्सएप पर कोई मैसेज भेजते हैं।
यह किसी एक देश की करेंसी नहीं है। न इसे कोई सरकार चलाती है, और न ही कोई बैंक कंट्रोल करता है। यह काम करता है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर।
ब्लॉकचेन: बिटकॉइन की रीढ़
ब्लॉकचेन को समझने के लिए आप उसे एक खुली डिजिटल बहीखाता समझिए, जिसमें हर लेनदेन दर्ज होता है। लेकिन खास बात ये है कि यह बहीखाता हजारों कंप्यूटरों पर एक साथ स्टोर होता है और इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
हर बार जब कोई बिटकॉइन लेनदेन होता है, तो वो एक “ब्लॉक” में दर्ज हो जाता है। जब एक ब्लॉक भर जाता है, तो वह एक चेन में जुड़ जाता है इसी चेन को हम ब्लॉकचेन कहते हैं।
इसकी पारदर्शिता और सुरक्षा के कारण, लोग इसे बैंकिंग सिस्टम से ज्यादा भरोसेमंद मानने लगे हैं।
बिटकॉइन क्यों कहलाता है डिजिटल सोना?
दुनिया में सिर्फ 21 मिलियन बिटकॉइन ही बनाए जा सकते हैं। यह नियम तकनीक में पहले से ही फिक्स है। इसका मतलब है कि यह भी सोने की तरह सीमित और दुर्लभ है।
जब किसी चीज की मांग ज्यादा और आपूर्ति कम होती है, तो उसकी कीमत बढ़ती है। ठीक वही नियम बिटकॉइन पर लागू होता है। यही वजह है कि इसे डिजिटल गोल्ड कहा जाता है। यह सीमित मात्रा ही इसे महंगा और कीमती बनाती है।
बिटकॉइन और फिएट करेंसी में क्या फर्क है?
हम रोज जिस पैसे से सामान खरीदते हैं, वह होता है फिएट करेंसी जैसे भारत में ₹500 का नोट। लेकिन इसकी कोई आंतरिक कीमत नहीं होती। अगर सरकार इसे बंद कर दे, तो इसकी वैल्यू शून्य हो सकती है, जैसा कि 2016 की नोटबंदी में देखा गया।
बिटकॉइन इससे अलग है। इसकी कीमत किसी सरकार की मर्जी पर नहीं टिकी होती। इसे कोई बंद नहीं कर सकता, और न ही इसकी संख्या बढ़ाई जा सकती है। यह सिस्टम सरकारों के बाहर की आजादी देता है जो आज के दौर में बहुत मायने रखता है।
क्या बिटकॉइन खरीदना सुरक्षित है?
इसकी कीमतें जितनी ऊंची जाती हैं, रिस्क भी उतना ही बढ़ता है। बिटकॉइन एक उच्च जोखिम वाला निवेश है, क्योंकि इसकी कीमतों में बड़ा उतार-चढ़ाव आता है।
कल जो बिटकॉइन ₹1.08 करोड़ था, वो किसी वैश्विक खबर या नीति से गिरकर ₹80 लाख भी हो सकता है।
इसके अलावा, अगर आपने अपने बिटकॉइन वॉलेट का पासवर्ड या ‘की’ खो दिया, तो आपका पैसा हमेशा के लिए चला जा सकता है। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने लाखों की कीमत के बिटकॉइन सिर्फ पासवर्ड भूलने से खो दिए।
इसके अलावा, कई देशों में क्रिप्टो करेंसी के नियम अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। कुछ सरकारें इसे बैन कर सकती हैं, टैक्स बढ़ा सकती हैं या नए नियम ला सकती हैं जो निवेशकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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