अमेरिका ने भारत पर लगा दिया सेकेंडरी टैरिफ, जेडी वैंस ने मीडिया को दी जानकारी, देखें वीडियो

Secondary tariffs on India
Secondary tariffs on India

जब दो बड़ी लोकतांत्रिक शक्तियां आमने-सामने आ जाएं, तो सवाल सिर्फ नीतियों का नहीं रह जाता, बात भरोसे, आत्मनिर्भरता और अपने-अपने राष्ट्रीय हितों की भी होती है। हाल ही में अमेरिका और भारत के बीच इसी तरह की तनातनी खुलकर सामने आई है, जब ट्रंप प्रशासन ने भारत पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी। यह कदम रूस से भारत की तेल खरीद को लेकर उठाया गया है, लेकिन इसके असर अब द्विपक्षीय संबंधों तक भी पहुंचते दिखाई दे रहे हैं।

भारत पर टैरिफ के ज़रिए रूस पर दबाव?

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने साफ तौर पर कहा है कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम रूस की तेल-आधारित अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए उठाया गया है। एनबीसी न्यूज़ के एक शो में उन्होंने कहा कि भारत जैसे देशों पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने से रूस को आर्थिक झटका लगेगा और संभवतः उसे युद्ध खत्म करने के लिए बातचीत की मेज़ पर लाया जा सकेगा।

यह बयान ऐसे समय आया है जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध अब भी जारी है और पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका, मास्को पर हर स्तर पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि चीन, जो रूस से सबसे अधिक कच्चा तेल खरीद रहा है, उसके खिलाफ कोई खुला कदम अभी तक नहीं उठाया गया है। इससे अमेरिका की नीति को लेकर दोहरे मापदंड की बहस भी शुरू हो गई है।

भारत का जवाब: ऊर्जा नीति पर कोई समझौता नहीं

भारत ने इस टैरिफ को लेकर साफ संकेत दिए हैं कि वह अपनी ऊर्जा नीति को लेकर किसी के दबाव में नहीं आने वाला। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका के आरोपों का करारा जवाब देते हुए कहा कि भारत की नीति पूरी तरह राष्ट्रीय हित पर आधारित है, और अगर किसी को इससे समस्या है तो उसे भारत से तेल खरीदने की जरूरत नहीं है।

जयशंकर ने व्यंग्यात्मक लहज़े में कहा कि, “यह मजेदार है कि एक ऐसा देश जो खुद को प्रो-बिजनेस बताता है, वह अब दूसरे देशों पर बिजनेस करने के लिए सवाल उठा रहा है।” उन्होंने यह भी साफ किया कि भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को लेकर निर्णय केवल भारतीय नागरिकों के हित में लिए जाएंगे, न कि किसी बाहरी दबाव में।

ये भी पढ़ें- अगले साल आएगा फोल्डेबल iPhone, चार कैमरे और टच आईडी से होगा लैस, देखें इसकी खासियत

व्यापार पर असर: टैरिफ बढ़ा, रिश्तों में खटास

ट्रंप प्रशासन के इन फैसलों ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर भी असर डाला है। भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क दोगुना कर 50% तक कर दिया गया है, वहीं रूस से आयातित तेल पर विशेष रूप से 25% का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है। ऐसे में यह कदम सिर्फ एक कूटनीतिक दबाव नहीं बल्कि भारत के आर्थिक हितों को भी सीधा प्रभावित करने वाला बन गया है।

इससे पहले अप्रैल में जयपुर दौरे पर आए उपराष्ट्रपति वेंस ने भारत से अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा उत्पादों को प्राथमिकता देने की अपील की थी, लेकिन अब हालात बिल्कुल विपरीत दिशा में जाते दिखाई दे रहे हैं।

कूटनीतिक चुनौतियाँ और भविष्य की राह

इन ताजा घटनाक्रमों से यह साफ होता है कि भारत-अमेरिका संबंधों में एक संवेदनशील मोड़ आ चुका है। दोनों देश वैश्विक मंच पर एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं, लेकिन अब टैरिफ और व्यापारिक प्रतिबंधों की राजनीति इन संबंधों में नई चुनौती बन रही है। अमेरिका भारत पर दबाव बनाकर रूस की आय पर चोट करना चाहता है, जबकि भारत इस दबाव को अपनी संप्रभुता के खिलाफ मान रहा है।

भारत यह भी सवाल कर रहा है कि जब यूरोपीय देश खुद रूस से व्यापार करते हैं, और जब अमेरिका स्वयं रूसी तेल को लेकर कई देशों से मोलभाव करता है, तो फिर सिर्फ भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?

इस पूरे विवाद ने यह दिखा दिया है कि आज के वैश्विक रिश्तों में राष्ट्रीय हित और कूटनीति एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हो सकते हैं, और किसी भी लोकतंत्र को अपनी नीतियों को स्वतंत्र रूप से चलाने के लिए मज़बूत इरादों की जरूरत होती है, जैसा कि भारत ने दिखाया है।

ये भी पढ़ें- विदेशों में भी बज रहा है भारतीय व्हिस्की का डंका, इन ‘सिंगल मॉल्ट्स’ ब्रांड्स ने जीते कई अवॉर्ड, देखें लिस्ट

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *