Babydoll Archie: बदला लेने के लिए असली महिला का AI से बनाया एडल्ट कंटेंट, इससे कैसे बचें?

archita phukan
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नई दिल्ली: इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी वायरल होने में वक्त नहीं लगता। लेकिन जब वायरल होने वाला चेहरा असली न हो, तब यह एक नई चिंता को जन्म देता है। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है भारत के असम राज्य से, जहां एक महिला की पहचान को हथियार बनाकर उसे डिजिटल दुनिया में अपमानित किया गया। यह कहानी है “बेबीडॉल आर्ची” नाम की एक ऑनलाइन सनसनी की, जो दरअसल एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा बनाई गई फर्जी पहचान थी।

एक वर्चुअल हसीना की वायरल दुनिया

“बेबीडॉल आर्ची” नाम का इंस्टाग्राम अकाउंट कुछ ही महीनों में 14 लाख फॉलोअर्स तक पहुंच गया। इस अकाउंट पर रोज़ाना बोल्ड फोटो और वीडियो पोस्ट होते, जिनमें एक महिला बेहद ग्लैमरस अंदाज में नजर आती थी। एक वीडियो जिसमें वह लाल साड़ी में विदेशी गाने पर डांस कर रही थीं, खासतौर पर वायरल हुआ। कई लोगों को यह विश्वास हो गया कि यह महिला जल्द ही अमेरिका की एडल्ट इंडस्ट्री में कदम रखने जा रही है। सोशल मीडिया पर उनके नाम के मीम्स, फैन पेज, और हजारों की संख्या में शेयर होने वाले पोस्ट बनने लगे।

मुख्यधारा की मीडिया ने भी इस चर्चा को उठाया और “बेबीडॉल आर्ची” को एक प्रभावशाली सोशल मीडिया शख्सियत मानते हुए उनके बारे में रिपोर्ट्स पब्लिश कीं। लेकिन इस ऑनलाइन पहचान के पीछे जो सच्चाई छिपी थी, वह किसी को भी झकझोर देने वाली थी।

सच्चाई: फेक प्रोफाइल, असली नुकसान

“बेबीडॉल आर्ची” नाम की यह पूरी पहचान एक फर्जी निर्माण थी, जिसे एक इंजीनियर प्रतीम बोरा ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए तैयार किया था। लेकिन चेहरे की प्रेरणा एक असली महिला थीं – असम के डिब्रूगढ़ की एक गृहिणी, जिन्हें हम सांची के नाम से संबोधित करेंगे।

सांची के भाई ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिससे इस धोखाधड़ी की परतें खुलीं। जांच में सामने आया कि प्रतीम बोरा सांची का पूर्व प्रेमी था। उनके बीच हुए विवाद के बाद, प्रतीम ने “बदला लेने” के इरादे से यह खतरनाक कदम उठाया।

पुलिस अफसर सिज़ल अग्रवाल के अनुसार, प्रतीम बोरा ने सांची की तस्वीरों को मॉर्फ कर के फर्जी प्रोफाइल बनाई और फिर AI टूल्स जैसे चैटजीपीटी और डिज़ाइन का इस्तेमाल कर डीपफेक फोटो और वीडियो तैयार किए। यह कंटेंट तेजी से वायरल हुआ और अकाउंट को जबरदस्त लोकप्रियता मिली।

एक मशीनी चेहरा, लाखों की कमाई

पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि प्रतीम ने इस इंस्टाग्राम अकाउंट से लगभग 10 लाख रुपये कमाए। सिर्फ गिरफ़्तारी से पहले के पांच दिनों में ही लगभग तीन लाख रुपये की कमाई हुई थी। उनके अकाउंट के लिंकट्री पेज पर लगभग 3,000 सब्सक्रिप्शन थे।

12 जुलाई को प्रतीम बोरा को गिरफ्तार किया गया। उनके पास से लैपटॉप, मोबाइल, हार्ड ड्राइव और बैंक दस्तावेज़ जब्त किए गए। उन पर यौन उत्पीड़न, अश्लील सामग्री फैलाने, मानहानि, धोखाधड़ी और साइबर क्राइम से जुड़े कई गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। यदि दोषी साबित होते हैं, तो उन्हें 10 साल तक की सज़ा हो सकती है।

परिवार का टूटना और कानून की सीमाएं

सांची के परिवार के लिए यह पूरा प्रकरण सदमे से कम नहीं था। उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि इंटरनेट पर वायरल हो रही यह “हस्ति” उनकी अपनी बेटी की छवि को बर्बाद करने का माध्यम बन रही है। सांची सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं थीं, इसलिए उन्हें इस फर्जी अकाउंट के बारे में तब तक पता नहीं चला जब तक यह वायरल नहीं हो गया।

पुलिस ने समय रहते कार्रवाई की, लेकिन अफसोस की बात यह है कि अकाउंट पर पहले ही सैकड़ों पोस्ट और लाखों व्यूज आ चुके थे। भले ही अब वह अकाउंट निष्क्रिय कर दिया गया हो, लेकिन उसकी तस्वीरें और वीडियो अभी भी सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं।

टेक्नोलॉजी का अंधेरा पहलू

AI विशेषज्ञ और वकील मेघना बल के अनुसार, यह मामला उस भयावह हकीकत को उजागर करता है जहां तकनीक का इस्तेमाल किसी की छवि को बर्बाद करने के लिए किया जा सकता है। “राइट टू फॉरगॉटन” जैसी कानूनी प्रक्रिया मददगार हो सकती है, लेकिन इंटरनेट से पूरी तरह से किसी पहचान को मिटा पाना आज भी एक चुनौती है।

बल कहती हैं, “डीपफेक अब बदले का हथियार बन गया है। ऐसी घटनाएं पहले भी होती थीं, लेकिन AI ने इसे और आसान बना दिया है। कई पीड़ित महिलाएं शर्म और बदनामी के डर से चुप रहती हैं, या उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे टारगेट बन चुकी हैं।”

कानून, प्लेटफॉर्म और हमारी जिम्मेदारी

मौजूदा कानूनों के तहत इस तरह के अपराधों से निपटा जा सकता है, लेकिन AI-जेनरेटेड कंटेंट की बढ़ती समस्या को देखते हुए नए ढांचे की आवश्यकता महसूस होने लगी है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी ऐसे मामलों में तेजी से कार्रवाई करनी होगी। मेटा (इंस्टाग्राम की पैरेंट कंपनी) ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि मौजूदा ऑटोमेटेड मॉडरेशन सिस्टम ऐसे मामलों को रोकने में नाकाफी हैं।

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