मुंबई की लोकल ट्रेनों में 2006 में हुए सिलसिलेवार धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि सरकारी वकील आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में असफल रहे। ऐसे में यह यकीन करना मुश्किल है कि इन लोगों ने ही ये अपराध किया है। अगर आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया है।
11 जुलाई 2006: मुंबई की लोकल ट्रेनों में 7 धमाके
11 जुलाई 2006 को मुंबई के पश्चिमी रेलवे की लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास कोचों में 6:24 से 6:35 के बीच सात धमाके हुए थे। ये धमाके खार, बांद्रा, जोगेश्वरी, माहिम, बोरीवली, माटुंगा और मीरा रोड स्टेशनों के पास हुए। इस हमले में 189 लोगों की जान चली गई थी और 800 से ज्यादा घायल हुए थे। बम प्रेशर कुकर में आरडीएक्स, अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल ऑयल और कीलें भरकर टाइमर से ब्लास्ट किए गए थे।
हाईकोर्ट के फैसले की 4 मुख्य बातें:
सबूत नाकाफी: अभियोजन जिन गवाहों, सबूतों और जब्त सामान के आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराना चाहता था, वे कानूनी रूप से पर्याप्त नहीं थे।
फॉरेंसिक में खामियां: जिन विस्फोटकों का इस्तेमाल हुआ, उन्हें सही तरीके से सील या संरक्षित नहीं किया गया था।
बम की तकनीकी जानकारी अधूरी: बम की किस्म और उसकी तैयारी से जुड़ी जानकारी कोर्ट के रिकॉर्ड में स्पष्ट नहीं थी।
बयान जबरदस्ती के: कई आरोपियों के इकबालिया बयान संदेहास्पद थे, ऐसा प्रतीत होता है कि वे दबाव और हिंसा के जरिए लिए गए।
पहले क्या हुआ था?
धमाकों के बाद महाराष्ट्र ATS ने 20 जुलाई से 3 अक्टूबर 2006 के बीच 13 लोगों को गिरफ्तार किया था। चार्जशीट में कुल 30 आरोपी थे, जिनमें से 13 पाकिस्तानी बताए गए। 2015 में स्पेशल मकोका कोर्ट ने 5 को फांसी, 7 को उम्रकैद और एक को बरी कर दिया था। इसके बाद 2016 में दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील की, जो 2025 में सुनवाई के बाद पूरी हुई।
पुलिस का दावा और साजिश की कहानी
पुलिस ने आरोप लगाया था कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी आजम चीमा ने पाकिस्तान में सिमी और लश्कर के कुछ सदस्यों के साथ मिलकर इन धमाकों की योजना बनाई थी। दावा किया गया था कि मई 2006 में करीब 50 लोगों को ट्रेनिंग कैंप में बम बनाना और हथियार चलाना सिखाया गया।
19 साल बाद न्यायपालिका का फैसला
करीब दो दशक बाद हाईकोर्ट ने माना कि जांच और अभियोजन की प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं। सबूत और गवाह पर्याप्त नहीं थे, इसलिए सभी 12 आरोपी संदेह का लाभ पाते हुए बरी कर दिए गए।
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