Middle East

लगातार जंग में जलता है मिडिल ईस्ट, कोई पिटे-कोई मरे… फिर भी कभी क्यों नहीं बोलता ये मुस्लिम देश?

नई दिल्ली: जब पूरा मध्य पूर्व एक बार फिर संघर्ष और अस्थिरता की चपेट में है, और ईरान, सीरिया, लेबनान और यमन जैसे देश इज़राइली हमलों का सामना कर रहे हैं, तब अधिकांश देश इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कोई निंदा करता है, तो कोई बातचीत की वकालत करता है। लेकिन इस उथल-पुथल के बीच एक देश ऐसा भी है जो शायद ही किसी पक्ष में बोलता हो- बहरीन।


इस खाड़ी राष्ट्र की चुप्पी को यूं ही नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। बहरीन, जो भौगोलिक रूप से सऊदी अरब और कतर के बीच स्थित है, क्षेत्रीय राजनीति में अपनी अलग रणनीति अपनाता आया है। सवाल यह है: आखिर बहरीन क्यों खामोश रहता है?

अब्राहम समझौते का प्रभाव


2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में हुए अब्राहम समझौते के तहत बहरीन ने इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। इस ऐतिहासिक कदम के बाद दोनों देशों ने दूतावास खोले और व्यापारिक साझेदारी को आगे बढ़ाया। यही वजह है कि इज़राइल जब ईरान या उसके समर्थित गुटों पर सैन्य कार्रवाई करता है, तो बहरीन आमतौर पर राजनीतिक तटस्थता बनाए रखता है।


हालांकि यह चुप्पी आलोचना का विषय भी रही है, फिर भी बहरीन का रुख स्पष्ट है—वह संघर्षों से दूरी बनाए रखना चाहता है और किसी पक्ष की खुली हिमायत नहीं करता।


सऊदी अरब का रणनीतिक प्रभाव


बहरीन की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा काफी हद तक सऊदी अरब पर निर्भर है। सऊदी अरब स्वयं ईरान के साथ वैचारिक और भू-राजनीतिक मतभेद रखता है और धीरे-धीरे इज़राइल के साथ भी अपने संबंध सामान्य करने की दिशा में बढ़ रहा है। ऐसे में बहरीन के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह सऊदी की नीति के अनुरूप ही चलने की कोशिश करे।


इसके अलावा, यमन, लेबनान और सीरिया के शिया गुटों को लेकर सऊदी की सख्त नीति का प्रभाव भी बहरीन की विदेश नीति पर पड़ता है।


ईरान से मतभेद और आंतरिक सुरक्षा चिंताएं


हालाँकि बहरीन की आबादी शिया बहुल है, लेकिन देश की सत्ता सुन्नी शासकों के हाथों में है। इस कारण वर्षों से सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव बना रहता है। बहरीन को आशंका है कि ईरान, जो शिया बहुल समुदायों का समर्थक रहा है, देश की स्थिरता को चुनौती दे सकता है।
इसीलिए जब ईरान या उसके समर्थित गुट निशाने पर आते हैं, तो बहरीन अक्सर न ही समर्थन करता है और न ही विरोध, बल्कि कूटनीतिक चुप्पी अपनाता है।


छोटा देश, सीमित संसाधन, बढ़ा जोखिम


बहरीन का आकार और संसाधन सीमित हैं। उसके पास न तो बड़ी सैन्य ताकत है और न ही स्वतंत्र सुरक्षा नीति अपनाने की क्षमता। ऐसे में किसी भी प्रकार का खुला राजनीतिक स्टैंड भविष्य के लिए जोखिमभरा हो सकता है।


चाहे वह अमेरिका हो, इज़राइल हो या सऊदी अरब—बहरीन इन सबके साथ संतुलन बनाए रखना चाहता है। यही वजह है कि वह अपनी कूटनीति को संयमित और मौन रखने में ही समझदारी मानता है।


आर्थिक हब बनने की दिशा में प्रयास


बहरीन, जो पहले तेल पर आधारित अर्थव्यवस्था रखता था, अब खुद को एक फाइनेंशियल और बैंकिंग हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यहाँ अमेरिका का एक बड़ा नौसैनिक अड्डा भी मौजूद है। ऐसे में बहरीन किसी भी तरह की राजनीतिक बयानबाज़ी से अपने आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्यों को खतरे में नहीं डालना चाहता।

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