Ladakh Protest: केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर लेह में बुधवार को हिंसक प्रदर्शन हुआ। छात्रों की पुलिस और सुरक्षाबलों से झड़प हो गई। इसमें 4 लोगों की मौत हो गई और 70 से ज्यादा लोग घायल हैं।अनुच्छेद 370 और 35A हटने के बाद लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश तो बना दिया गया, लेकिन राजनीतिक अधिकार, भूमि सुरक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे वादे अधूरे ही रह गए।
बुधवार को जब हजारों की भीड़ लेह हिल काउंसिल की ओर बढ़ी, तो उनकी आंखों में केवल आंसू नहीं थे, वहां पांच सालों की अनदेखी का गुस्सा भी था। प्रशासन ने रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाए, आंसू गैस छोड़ी, लेकिन गुस्साई भीड़ बेकाबू हो गई। CRPF की गाड़ी जला दी गई, पुलिस वैन तोड़ी गई और बीजेपी कार्यालय में आग लगा दी गई। यही नहीं, छात्रों ने पत्थरबाजी भी की।
इस हिंसा में 4 लोगों की जान चली गई और 72 से अधिक घायल हो गए। यह एक त्रासदी है, जिसे केवल ‘कानून-व्यवस्था की समस्या’ कहकर खारिज नहीं किया जा सकता।
सोशल मीडिया बना आंदोलन का मंच
आज के दौर में जब हर जेब में एक मोबाइल है, तो हर आवाज़ भी अब बंद कमरे में नहीं रहती। इस बार सोशल मीडिया ने लद्दाख के आंदोलन को जमीनी ताकत दी। रातों-रात ‘लद्दाख बंद’ की अपील वायरल हुई। हजारों लोग सुबह होते-होते लेह हिल काउंसिल के बाहर जमा हो गए।
सोनम वांगचुक का अनशन टूटा
15 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जो इस पूरे आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बन चुके हैं, उन्होंने आखिरकार हिंसा के बाद अपना अनशन तोड़ दिया।
लद्दाख की युवा पीढ़ी से कहा, “यह लद्दाख के लिए दुख का दिन है। हमने शांति का रास्ता चुना था। लेह से दिल्ली तक पैदल चले, संविधान की बात की, किसी को नहीं धमकाया। आज हमारी उस शांति को ठुकरा दिया गया है। हिंसा हो रही है, गोलियां चल रही हैं। मैं लद्दाख की युवा पीढ़ी से कहता हूं- ये मूर्खता है, इसे बंद करो।”
वांगचुक की यह अपील एक पिता की, एक शिक्षक की, एक सच्चे नागरिक की आवाज थी, जो चाहता है कि उसके लोग भावनाओं के बजाय विवेक से काम लें।
उन्होंने प्रदर्शन भी रोकने की घोषणा की और प्रशासन से भी अनुरोध किया कि दबाव और बल प्रयोग बंद किया जाए।
अब क्या करेगी सरकार?
घटनाओं की इस भयावहता के बीच गृह मंत्रालय ने घोषणा की है कि 6 अक्टूबर को दिल्ली में लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ अगली बातचीत होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बैठक भी पहले की तरह केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगी?
लद्दाख के लोगों की मांगें अब भी वही हैं:
- राज्य का दर्जा,
- छठी अनुसूची में शामिल किया जाना,
- स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय अधिकार,
- और संवैधानिक सुरक्षा।
अगर इन मुद्दों पर संवेदनशील और व्यावहारिक निर्णय नहीं लिए गए, तो यह आंदोलन केवल और उग्र हो सकता है। और तब शायद उसे संभालना बहुत देर हो जाएगी।
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